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________________ २५ यजुर्वेद में अरिष्टनेमि का उल्लेख आया है। "अध्यात्म यज्ञ को प्रगट करने वाले, संसार के भव्य जीवों को सब प्रकार से यथार्थ उपदेश देने वाले और जिनके उरदेश से जीवो की आत्मा बलवान होती है उन सर्वज्ञ नेमिनाथ के लिए बाहुति समर्पित करता हूँ।" प्रभास पुराण में भी अरिष्टनेमि की स्तुति की गई है। *७ साम्प्रदायिक अभिनिवेश के कारण कई स्थलों पर स्पष्ट नाम का निर्देश होने पर भी टीकाकारों ने अर्थ में परिवर्तन किया है। अतः बाज मावश्यकता है तटस्थ दृष्टि से उस पर चिन्तन करने की । भगवान अरिष्टनेमि का नाम अहिंसा की अखण्ड ज्योति जगाने के कारण इतना अत्यधिक लोकप्रिय हुआ कि महात्मा बुद्ध के नामों की सूची में एक नाम अरिष्टनेमि भी है। इक्कीसवें तोर्थं कर नमि, बोसवें मुनिसुबत और उन्नीसवें मल्ली भगवती का वर्णन वैदिक और बौद्ध वाङ्मय मे नही मिलता । अठारहवें तीर्थ कर 'अर' का वर्णन अंगुत्तर निकाय में भी आता है। वहाँ पर महात्मा ने अपने से पूर्व जो सात तीर्थ कर हो गये थे उनका वर्णन करते हुए कहा कि उनमें से सातवे तीर्थं कर 'अरक' थे। ५६ 'अरक' तीर्थ कर के समय का निरूपण करते हुए कहा कि 'अरक तीर्थकर के समय मनुष्य की आयु ६० हजार वर्ष की होती थी। ५०० वर्ष की लड़की विवाह के योग्य समझो जाती थी । उस युग मे मानवो को केवल छह प्रकार का कष्ट था-- (१) शोत, (२) उष्ण, (३) भूख, (४) तृषा, (५) पेशाब, (६) मलोत्सर्ग इसके अतिरिक्त किसी भी प्रकार की पीड़ा और व्यापि नही थो । तथापि अरक ने मानवों को नश्वरता का उपदेश देकर धर्म करने का सन्देश दिया। उनके उस उपदेश की तुलना उत्तराध्ययन के दसवें अध्ययन से को जा सकती है । ५६. वाजस्य तु प्रसव आवभूर्वमाच विश्वा भुवनानि सर्वतः । स नेमिराजा परियाति विद्वान् प्रजा पुष्टि - यजुर्वेद, अध्याय 8 मंत्र २५ पृ० ४३ व मानोऽअस्मै स्वाहा । --- ५७. कैलाशे विमले रम्ये वृषभोऽयं जिनेश्वरः, चकार स्वावतारं च सर्वज्ञः सर्वगः शिवः । रेवताद्री जिनो नेमियुगादिविमलाचले, ऋषीणा या श्रमादेव मुक्तिमार्गस्य कारणम् ॥ - प्रभास पुराण ५८. बौद्ध धर्म दर्शन, पृ० १६२ 'मुगपक्स' ५९. भूतपुण्वं भिक्खवे सुनेसोनाम सत्या अहोसि तिस्थकरो कामेह वीतरागो .........अरनेमि" "कुद्दालक''''''''हत्यिपाल, “हत्थिपाल, जोतिपाल अरको नाम सत्या अहोति तित्मक कामेसु वीतरागो। अरकस्स खो पन, भिक्खने सत्युनो अनेकानि सावकसतानि बहेसु । — अंगुत्तरनिकाय, भाग हैं, पृ० ३५६-२५७ सं० भिक्षु, जगदीश कस्सपो, पालि प्रकाशन मण्डल बिहार राज्य
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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