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भगवान् परिष्टनेमि
भगवान् अरिष्टनेमि वाईसवें तीर्थ कर थे। आधुनिक इतिहासकारो ने उनको ऐतिहासिक पुरुषों की पंक्ति मे स्थान नही दिया है, किन्तु जब वे कर्मयोगी श्री कृष्ण को ऐतिहासिक पुरुष मानते है तो अरिष्टनेमि भी उसी युग मे हुए थे। उनके निकट के पारिवारिक सम्बन्ध थे, अर्थात् श्री कृष्ण के पिता बसुदेव और अरिष्टनेमि के पिता समुद्रविजय दोनों सहोदर-सगे भाई थे । अतः उन्हें ऐतिहासिक पुरुष मानने में संकोच नही होना चाहिए।
ऋग्वेद मे 'अरिष्टनेमि' शब्द चार बार प्रयुक्त हुआ है। "स्वस्ति नस्तायो अरिष्टनेमिः" (ऋग्वेद १३१४।८६।६) यहाँ पर अरिष्टनेमि शब्द भगवान् अरिष्टनेमि के लिए ही आया है ।५०
छान्दोग्योपनिषद् मे भगवान् अरिष्टनेमि का नाम 'घोर आगिरस ऋषि' आया है। घोर आगिरस ने श्री कृष्ण को आत्म-यज्ञ की शिक्षा प्रदान की थी। उनकी दक्षिणा तपश्चर्या, दान, ऋजुभाव, अहिंसा, सत्यवचन रूप थी।५१ धर्मानंद कौशाम्बी का मानना है कि आगिरस भगवान् नेमिनाथ का ही नाम था। ५२
ऋग्वेद कार ने मगवान अरिष्टनेमि को ताक्ष्य अरिष्टनेमि भी लिखा है।५3
महाभारत मे भी 'ताक्ष्य' शब्द का प्रयोग हुआ है । जो भगवान् अरिष्टनेमि का ही अपर नाम होना चाहिए।१४ उन्होंने राजा सागर को मोक्षमार्ग का जो. उपदेश दिया है वह जैन धर्म के मोक्ष मन्तव्यों के अत्यधिक अनुकूल है। उसे पढते ही ऐसा ज्ञात होता है कि मोक्ष सम्बन्धी आगमिक वर्णन ही पढ़ रहे हैं। उन्होने कहा
सागर । मोक्ष का सुख ही वस्तुत. सही सुख है, जो अहनिश धन-धान्य उपार्जन मे व्यस्त है, पुत्र और पशुओं मे ही अनुरक्त है वह मूर्ख है, उसे यथार्थ ज्ञान नही होता। जिसकी बुद्धि विषयो मे आमक्त है, जिसका मन अशान्त है, ऐसे मानव का उपचार कठिन है, क्यो कि जो राग के बंधन में बंधा हुआ है, वह मूढ हैं तथा मोक्ष पाने के लिए अयोग्य है । ५५
५०. ऋग्वेद
१।१४। ८६६ १। २४११८०।१० ३।४। ५३ । १७
१० । १२ । १७८ । १ ५१. अतः यत् तपोदानमाजवमहिसासत्यवचनमितिता अस्य दक्षिणा .
- छान्दोग्य उपनिषद् ३३१७४ ५२. भारतीय संस्कृति और अहिंसा, पृ० ५७ ५३. त्यमू षु वाजिनं देवजूतं सहावानं तरुवारं रथानाम् अरिष्टनेमि पृतनाजमाशु स्वस्तये तायमिहाहुवेम ।
-ऋग्वेद १०११२११७८११ ५४. एवमुक्तस्तदा ताय. सर्वशास्त्रविदावरः । विबुध्य संपदं चाग्रयां सदाक्यमिदमबबीन ।
-महाभारत, शान्तिपर्व २८८४ ५५. महाभारत, शान्तिपर्व २८८।५,६