SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ जैनागम के अनुसार भगवान् 'अर' की आयु ८४००० वर्ष हैं और उनके श्चात् होने वाली तीर्य कर मल्ली की आयु ५५००० वर्ष की है। इस दृष्टि से 'बरक' का समय 'भगवान 'अर' और भगवती मल्ली के मध्य में ठहरता है। यहाँ पर यह भी स्मरण रखना चाहिए कि 'अरक' तीथं कर से पूर्व बुद्ध के मत मे 'अरनेमि' नामक एक तीर्थंकर और हए है। बुद्ध के बताये हुए अरनमि और जैन तीर्थकर 'अर' संभवतः दोनों एक हों ! भगवान शान्ति भगवान् शान्तिनाथ सोलहवें तीर्थ कर हैं। वे पूर्वभव में जब मेघरथ थे तब कबूतर की रक्षा की, यह घटना वसुदेव हिंडी,१२ त्रिषष्टिशालाका पुरुष चरित्र३ आदि मे मिलती है। तथा शिवि राजा के उपाख्यान के रूप मे वैदिक ग्रंथ महाभारत में प्राप्त होती है और बौद्ध वाङमय मे 'जीमतवाहन, के रूप में चित्रित की गई है। प्रस्तुत घटना हमे बताती है कि जैन परम्परा केवल निवृत्ति रूप अहिंसा मे ही नही, पर मरते हुए की रक्षा के रूप मे-प्रवृत्ति रूप अहिंसा मे भी धर्म मानती है । सोरेन्सन ने महाभारत के विषेश नामो का कोष बनाया है । उस कोष मे सुपाश्वं, चन्द्र, और सुमति ये तीन नाम जैन तीर्थ करों के आये है। महाभारतकार ने इन तीनो को असुर बताया है । ६४ वैदिक मान्यता के अनुसार जैन धर्म असुरों का धर्म रहा है। यद्यपि असुर लोग आहंत धर्म के उपासक थे इस प्रकार का वर्णन जैन साहित्य मे नही मिलता, किन्तु विष्णु पुराण,६४ पद्म पुराण,६ मत्स्य पुराण,७ देवी भागवत और महाभारत आदि मे असुरों को अहंत या जैनधर्म का अनुयायो बताया है । अवतारो के निरूपण मे जिस प्रकार भगवान् ऋषभ को विष्णु का अवतार कहा है, वैसे ही सुपार्श्व को कुपथ नामक असुर का अशावतार कहा है तथा सुमति नामक असुर के लिए वर्णन मिलता है कि वरुणप्रासाद मे उनका स्थान दैत्यों और दानवों मे था । ६०. अप्पकं जीवितं मनुस्सानं परिन लहुक बहुदुक्खं 'बहुपायास मन्तयं बोद्धध्वं कतब्ब कुसलं, चरित्तम्व, ब्रह्मचरियं, नत्थि जातस्स अमरणं । -अंगुत्तर निकाय, अरकसुत्त भाग ३ पृ. २५७ सं० वही, प्रकाशन वही । ६१. बावश्यक नियुक्ति गाथा ३२५-२२७ ५६ ६२. वसुदेव हिही २१ लम्भक, ६३. त्रिषष्टि० श० पु० २४ ६४. जैन साहित्य का वृहद इतिहास, प्रस्तावना, पृ० २६ ६५. विष्णु पुराण ३॥१७१८ ६६. पद्म पुराण सष्टि खण्ड, अध्याय १३ श्लो० १७०-४१३ ६७, मत्स्य पुराण २४१४३-४६ ६८. देवी भागवत ॥१३॥५४-५७ ६६. जैन साहित्य का वृहद् इतिहास पृ० २६
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy