________________
२०२
कल्प
मौतम की ही जिज्ञासा का समाधान है। वे ही ज्ञान-गंगा के मूल उद्गम स्रोत कहे जा सकते हैं।
भगवान महावीर के प्रति गौतम का अत्यधिक अनुराग था। एक बार वे अपने से लघु-श्रमणों को केवलज्ञान की उपलिब्ध होते देखकर चिन्तित हो उठे कि 'अभी तक मुझे केवलज्ञान क्यों नही हुआ?' इस पर भगवान् ने केवलज्ञान की अनुपलब्धि का कारण बताते हुए कहा- गौतम ! चिरकाल से तू मेरे स्नेह में बंधा हुआ है । चिरकाल सेतू मेरी प्रशंसा करता रहा है, सेवा करता रहा है, मेरे साथ चिरकाल से परिचय रखता रहा है, मेरा अनुसरण करनेवाला रहा है। अनेक देव और मनुष्य भव में हम साथ-साथ रहे हैं और यहाँ से आयु पूर्ण करके भी दोनों एक ही स्थान पर पहुँचेंगे।'३५७
प्रभु का समाधान पाकर गौतम अत्यधिक आह्लादित हुए ।
परिनिर्वाण के पूर्व भगवान ने गौतम को सन्निकटवर्ती ग्राम में देवशर्मा ब्राह्मण को प्रतिबोध देने के लिए भेज दिया था । वे पुन: लौटकर महावीर के चरणों में पहुंचना चाहते थे, पर सन्ध्या हो जाने से वही रुक गये। रात्रि में भगवान के निर्वाण के समाचार को सुनकर गौतम भाव-विह्वल होकर विचारो के सागर में डुबकियाँ लगाने लगे-'हे प्रभो ! निर्वाण के दिन किम कारण से आपने मुझे दूर भेजा ! हे प्रभो । इतने समय तक मैं आपकी सेवा करता रहा, अन्त समय मे मुझे दर्शन से क्यों वंचित रखा ।''.... कुछ क्षण तक इस प्रकार भाव-प्रवाह में बहने के बाद विचारों का प्रवाह बदल गया । 'अरे, मै यह क्या सोच रहा हूं।' भगवान वीतराग थे। वे राग और द्वेष से मुक्त थे। मैं उन पर मोह रख रहा था, पर वे मोहमुक्त थे।” इस प्रकार विचार आते ही वे शुक्लध्यान ध्याते हुए घातिकर्मों को नष्ट करने लगे। अनुराग की कड़ी को तोड़ डाली और उसी रात के अन्त में केवलज्ञान केवलदर्शन के धारक बन गए।
कार्तिक अमावस्या की मध्यरात्रि में भगवान महावीर का परिनिर्वाण हुआ और अन्तिम रात्रि में गौतमस्वामी ने भी चार कर्मों का क्षय करके केवल ज्ञान केवलदर्शन प्राप्त कर लिया। इसी कारण कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा 'गौतम