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________________ परिनिर्वाण २०३ प्रतिपदा' के नाम से विश्रुत है । इसी दिन अरुणोदय के प्रारम्भ से ही अभिनव वर्ष का आरम्भ होता है । ५८ उसके पश्चात् बारह वर्षों तक केवलज्ञानी गौतम भव्य प्राणियों को प्रतिबोध देते हुए विचरते हैं। गौतम को केवलज्ञान होने पर समग्र संघ के संचालन का नायकत्त्व आर्य सुधर्मा पर आया । ग्यारह गणधरों में से अग्निभूति आदि नव गणधर तो भगवान के सामने ही निर्वाण को प्राप्त हो चुके थे, अतः सुधर्मा ने ही गण का नेतृत्त्व किया । गौतम के मोक्ष पधारने पर आर्य सुधर्मा को केवलज्ञान हुआ, और आठ वर्ष तक केवली अवस्था में रहे। सुधर्मा को केवल ज्ञान होने पर आर्य जम्बूस्वामी ने संघ का संचालन किया ।३५९ मल : जं रयणि च णं समणे जाव सम्बदुक्खप्पहीणे तं रयणिं च णं नव मल्लई नव लिच्छई कासीकोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो अमावसाए पाराभोयं पोसहोववासं पट्ठवइंसु, गते से भावुज्जोए दव्वुज्जोवं करिस्सामो ॥१२७॥ अर्थ-जिस रात्रि मे श्रमण भगवान महावीर कालधर्म को प्राप्त हुए, यावत् उनके सम्पूर्ण दु.ख नष्ट हो गए, उस रात्रि में काशी देश के, मल्लवी वंशीय नौ गणराजा और कौशल देश के, लिच्छवी वंशीय दूसरे नौ गणराजाइस प्रकार अठारह गण राजा अमावस्या के दिन, आठ प्रहर का पौषधोपावास करके वहाँ रहे हुए थे, उन्होने यह विचार किया कि भावोद्योत अर्थात् ज्ञानरूपी प्रकाश चला गया है अतः अब हम द्रव्योद्योत करेगे।। विवेचन- कार्तिक कृष्णा अमावस्या की रात्रि में भगवान् महावीर मोक्ष पधारे । वह रात्रि देवो के आवागमन से प्रकाशमय होगई । अठारह गणराजाओं ने उस समय पौषधोपवास किया हुआ था, उन्होंने देखा ज्ञानरूपी वह दिव्य प्रकाश चला गया है, समस्त संसार अंधकाराच्छन्न हो गया है। इसलिए देवों ने द्रव्योद्योठ किया है। अब हम भगवान् महावीर के ज्ञान के प्रतीक के रूप में
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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