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________________ कल्प सूत्र दुक्खपहीणे चंदे नाम से दोच्चे संवच्छरे पीतिवद्धणे पक्खे सुव्वयग्गी नाम से दिवसे उवसमि त्ति पवच्चइ देवाणंदा नाम सा रयणी निरइ ति पवच्चह अच्चे लवे मुहत्ते पाण थोवे सिद्धे नागे करणे सव्वसिद्धे मुहुत्ते साइणा नक्खत्तेणं जोगमुवागरणं कालगए विक्कते जाव सव्वदुक्खप्पही ॥ १२३ ॥ २०० अर्थ - भगवान अन्तिम वर्षावास करने के लिए मध्यमपावा नगरी के राजा हस्तिपाल की रज्जुक सभा में रहे हुए थे, चातुर्मास का चतुर्थ मास और वर्षाऋतु का सातवां पक्ष चल रहा था अर्थात् कार्तिक कृष्णा अमावस्या आई । अन्तिम रात्रि का समय था । उस रात्रि को श्रमण भगवान महावीर काल- धर्म को प्राप्त हुए । संसार को त्यागकर चले गये । जन्म ग्रहण की परम्परा का उच्छेद कर चले गये । उनके जन्म, जरा और मरण के सभी बन्धन नष्ट हो गए । भगवान सिद्ध हुए, बुद्ध हुए, मुक्त हुए, सब दुःखों का अन्त कर परिनिर्वाण को प्राप्त हुए । 1 श्रमण भगवान महावीर जिस समय काल धर्म को प्राप्त हुए उस समय चन्द्र नामक द्वितीय संवत्सर चल रहा था, प्रीतिवर्धन नामक मास था । नन्दिवर्धन नामक पक्ष था । अग्गिवेश - ( अग्निवेश्म) नामक दिन था जिसका द्वितीय नाम 'उवसम' भी कहा जाता है । देवानदा नामक रात्रि थी जिसका द्वितीय नाम "निरइ" कहा जाता है । उस रात्रि को अर्थ नामक लव था, मुहूर्त नामक प्राण था, सिद्ध नामक स्तोक था, नाग नामक करण था, सर्वार्थ सिद्ध नामक मुहूर्त था, और बराबर स्वाति नक्षत्र का योग आया हुआ था, ऐसे समय में भगवान् काल धर्म को प्राप्त हुए, संसार छोड़कर चले गए। उनके सम्पूर्ण दुःख नष्ट हो गये । 344 ३५५ मूल : जं रयणि च णं समणे भगवं महावीरे कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे सा णं रयणी बहूहिं देवेहि य देवेहि य ओवय
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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