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________________ १६८ भगवान के वर्षावास मूल कल्पसूच : तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे श्रद्वियगामं नीसाए पढमं अंतरावासं वासावासं उवागए ! चंपं च पिट्टिचपं च निस्साए तओ अंतरावासे वासावासं उवागए । वेसालिं नगरिं वाणियगामं च निस्साए दुवालस अंतरावासे वासावासं उवागए । रायगिहं नगरं नालंदं च बाहरियं निस्साए चोइस अंतरावासे वासावासं उवागए । व म्मिहिलाए दो भद्दियाए एगं आलंभियाए एगं सावत्थीए एगं पणीयभूमिए एगं पावाए मज्झिमाए हत्थिवालस्स रन्नो रज्जुगसहाए अपच्छिमं अंतरावासं वासावासं उवागए। १२२ । अर्थ-उस काल उस समय श्रमण भगवान् महावीर ने अस्थिक ग्राम की निश्राय (आश्रय लेकर ) में वर्षावास किया । अर्थात् भगवान् का प्रथम वर्षावास अस्थिक ग्राम में हुआ । चम्पानगरी मे और पृष्ठचम्पा में भगवान् ने तीन चातुर्मास किये। वैशाली नगरी में और वाणिया ग्राम मे भगवान् बारह बार चातुर्मास्य करने के लिए आये थे । राजगृह मे और उसके बाहर नालंदापाड़ा में भगवान् चौदह बार चातुर्मास करने के लिए आये थे । मिथिला नगरी में भगवान् छह बार चातुर्मास करने के लिए आये थे । भद्दिया नगरी में दो बार श्रावस्ती मे एक बार प्रणीत भूमि अर्थात् वज्रभूमि नामक अनार्य देश में एक बार भगवान् वर्षावास करने के लिए पधारे थे और अन्तिम चातुर्मास करने के लिए भगवान् मध्यम पावा के राजा हस्तिपाल की रज्जुक सभा में पधारे । 34४ • चातुर्मास सूची श्रमण भगवान महावीर ने ३० वर्ष की आयु में सर्वविरतिरूप श्रमण धर्म की दीक्षा ग्रहण की। और ७२ वर्ष की आयु में भौतिक देह का त्यागकर
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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