________________
तीर्थकर काल : पाश्र्वनाथ परम्परा का मिलन
स्थविरों ने कालस्यवेषि को महावीर के दर्शन का परिचय दिया, परिचय प्राप्त कर वे भी महावीर के शासन में आए ।३४०
भगवान महावीर की परिषद् में अन्यतीथिक संन्यासी भी उपस्थित होते थे। आर्य स्कंदक'४', अम्बड , पुद्गल और शिव आदि परिवाजकों ने भगवान् से अनेक प्रश्न किये और समाधान पाकर भगवान के शिष्य बने ।
भगवान् महावीर गहन से गहन प्रश्नों को भी अनेकान्त दृष्टि से शीघ्र ही सुलझा देते थे। सोमिल ब्राह्मण, तुगियानगरी के श्रमणोपासक राजकुमारी जयन्ती, माकन्दी रोहम पिङ्गल आदि के प्रश्नों के उत्तर इस बात के स्पष्ट प्रतीक हैं।
भगवान् के उपदेश से आठ राजाओं ने राज्यश्री को छोड़कर संयम ग्रहण किया था। (१) वीरांगक, (२) वीरयश, (३) संजय,३४२ (४) एणेयक (५) सेय., (६) शिव, (७) उदयन, (८) शंख काशीवर्धन ४ ।।
मगधाधीश सम्राट श्रेणिक के अभयकुमार आदि अनेक पुत्रो ने भगवान् के पास संयम लिया ४४ । श्रेणिक की सुकाली, महाकाली, कृष्णा आदि दम रानियों ने भी प्रव्रज्या ली ।१४५
धन्ना४६ और शालिभद्र ५४७ जैसे धनकुबेरों ने भी संयम मार्ग स्वीकार किया। आर्द्र कुमार जैसे आर्येतर जाति के युवकों ने और हरिकेशी४. जैसे चाण्डाल जातीय मुमुक्षुओं ने और अर्जुनमालाकार ५० जैसे हत्यारों ने भी अपनी वृत्तियों में उत्क्रान्ति करके भगवान् के श्रमण संघ में स्थान पाया था।
वैशाली गणराज्य के प्रमुख महाराजा चेटक महावीर के मुख्य श्रावक थे।"१ उनके छहों जामाता ५२ उदायन, दधिवाहन, शतानीक, चन्द्रप्रद्योत, नन्दिवर्धन तथा श्रेणिक और नौ मल्लवी और नौ लिच्छवी ये अठारह गणनरेश भी भगवान के परम भक्त थे। ३५ भगवान् ने स्त्री-पुरुष, ब्राह्मण, शूद्र, क्षत्रिय, वैश्य, आर्य-अनार्य आदि सभी को बिना किसी भेद भाव के अपने धर्म-तीर्थ में स्थान दिया और अखिल विश्व के सभी मुमुक्षुओं के लिए धर्मसाधना का मंगल द्वार खोल दिया।