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श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्परा के ग्रंथों के आधार से यह पूर्ण सिद्ध है कि भगवान पाव की जन्मभूमि सुप्रसिद्ध काशी राष्ट्र की राजधानी वाराणसी घी काशी नरेश अश्वसेन उनके पिता थे और वामा उनकी माता थी। पोष कृष्णा दशमी को उनका जन्म हुआ । ३५ आपके युग में तापस परम्परा का प्राबल्य था। अज्ञान तप का ही सच्चा और सही तप समझा जाता था । गृहस्थाश्रम में हो आपने पंचाग्नि तप करते हुए कमठ को अहिंसा का उपदेश दिया और पुनी में जलते हुए सर्प को नमस्कार महामंत्र सुनवाकर उसका उद्धार किया 135 संयम ग्रहण करने के पश्चात् उप्र साधना कर कैवल्यज्ञान प्राप्त किया। कुरु, कौशल, काशी, सुम्ह, अवन्ती, पुण्ड्र, मालव, अंग, बग कलिंग, पाचाल, मगध, विदर्भ, भद्र, दशार्ण, सौराष्ट्र, कर्णाटक' कोकण, मेवाड, लाट, द्राविड, काश्मीर कच्छ, शाक, पल्लव, वत्स, आभीर आदि प्रदेशों में परिभ्रमण कर विवेक मूलक धर्म साधना के मार्ग को बताया। भगवान् पार्श्वनाथ के आत्मा व्रत आदि तात्विक विषयों का जन मानस पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि वैदिक संस्कृति के उपासकों ने भी उसे अपनाया। भगवान पार्श्वनाथ के उपदेशो की स्पष्ट झांकी उपनिषदो मे भी आयी है। प्राचीनतम उपनिषद् भी पार के बाद के है । ३८
डाक्टर विमलाचरण लॉ के अभिमतानुसार 'भगवान पार्श्व के धर्म का प्रचार भारत के उत्तरवर्ती क्षत्रियों में था और उसका प्रमुख केन्द्र वैशाली था । वृतिगण के प्रमुख महाराजा पेटक भगवान पार्श्व के धर्म का पालन करने वाले थे ।४० भगवान महावीर के माता पिता पार्श्वनाथ की परम्परा के मानने वाले श्रमणोपासक थे । ४१
३५. (क) पामनाह परियं देवभद्रसूरि (ख) पादवनाथ चरित्र भावदेव सूरि
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३६. तो भगवया नियमपुरिसवयण दवाविओ से पचणमोक्कारो पञ्चवखाणं व पडिद्रियं तेन ।
उप्पन्न महापुरिस चरियं पृ० २६२
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३७. सकलकीर्ति, पार्श्वनाथ चरित्र, १५०७६-८५।२३।१७-१८
३८. राधाकृष्णन् - इण्डियन फिलोसफी भाग ११० १४२ 'ऐतरेय, कौशीतकी, तैत्तिरीय, छान्दोग्य और वृहदारण्यक - ये सभी उपनिषद् प्राचीनतम हैं । ये बुद्ध के पूर्व के हैं। इनका काल मान ईसा पूर्व
दसवी शताब्दी से तीसरी शताब्दी तक माना जा सकता है।
राधाकृष्णन
(ख) दी प्रिंसिपल उपनिषदाज् १० २२
(ग) पोलिटिकल हिस्ट्री ऑफ एन्सियन्ट इण्डिया, पृ० ५२, एच० सी० राय चौधरी (घ) दी वेदाज, प० १४६-१४८ एफ० मेक्समूलर,
३६. Kshatriya claus in Buddhist India p. 82
४०. बेसालीए पुरीए सिरियासजिणेससामणसणाहो
कुलसंभूओ
बेडगनामानियोअसि ||
--उपदेशमाला श्लोक १२
४१. समस्त नं भगवओ महावीरस्स बम्मापियरो पासावच्चिज्जा समणोवासना वाविहोत्या- आचारांग २, चूलिका ३ सू० ४०१
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