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भगवान् पार्थ
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डाक्टर हर्मन जेकोबी भगवान् पाश्व को ऐतिहासिक व्यक्ति मानते हैं।
उन्होंने जैनागमों
के साथ ही बौद्ध पिटकों के प्रमाणों के प्रकाश में यह सिद्ध किया कि भगवान् पाश्वं एक ऐतिहासिक पुरुष हैं। उनके इस कथन का समर्थन अन्य अनेक विद्वानो ने भी किया है। डाक्टर वासम के मन्तव्यानुसार 'भगवान् महावीर को बौद्ध पिटकों में बुद्ध प्रतिसाद्ध के रूप मे उहङ्कित किया है, एतदर्थं उनकी ऐतिहा सिकता असंदिग्ध है। भगवान् पार्श्वनाथ चौबीस तीर्थ करो मे से तेवीसवें तीर्थंकर के रूप मे विधुत हैं। १० भगवान् पा का अस्तित्व काल ईस्वी पूर्व दसवी वाताब्दी है। वे भगवान् महावीर के दो सौ पचास वर्ष पूर्व हुए थे। उनका जीवन काल सौ वर्ष का था। दिगम्बर आचार्य गुणभद्र के अभिमतानुसार भगवान् पाप के परिनिर्वाण के २५० वर्ष पश्चात् भगवान् महावीर का निर्वाण हुआ । २ यदि इस अभिमत को स्वीकार किया जाय तो पार्श्वनाथ का अस्तित्व ईस्वी पूर्व नौवी शताब्दी ठहरता है । जज कार्पेण्टियर का मन्तव्य है 'पार्श्व ऐतिहासिक पुरुष हैं और आज जैनधर्म के सच्चे स्थापनकर्ता के रूप में माने जाने लगे हैं। कहा जाता है कि महावीर से २५० वर्ष पूर्व उनका निर्वाण हुआ । वे संभवत: ईसा से पूर्व वी शताब्दी में रहे होगे 33 एच० सी० राय चोधरी ने लिखा है "जैन तीर्थंकर पार्व का जन्म ईसा पूर्व ८७७ और निर्वाण काल ईसा पूर्व ७७७ है। १४
? That Parshva was a historical person, is now admitted by all as very probeble... .... — The Sacred Books of the East, Vol. XIV, Introduction p. 21.
३०. As he (Vardhamen Mahavira ) is referrd to in the Buddhist scriptures as one of the Buddha's chief opponents his historicity is beyond doubt......... Parshva was remembered as the twenty third of the twenty four great feachers or Tirthankaras "ford-makers' of the Jaina Faith
The Wonder that was India (A. L Basham, B. A. Ph-D., F. R. A. S.) Reprinted 1956, pp. 287-88.
-- आवश्यक नियुक्ति, मलयगिरिवृत्ति १०२४१
३१ पायजणामो य होइ बोरजिणो ।
अड्डाज्जम गए चरिमो समुत्पन्नो । पार्श्वगतीर्थमनाने पंचाशदद्विशताब्दके । तदभ्यन्तरत्यु- महावीरोऽत्र जातवान् ।
- महापुराण (उत्तर पुराण) १ ७४ पृ० ४६२ प्रका० भारतीय ज्ञानपीठ काशी
३३ कैम्ब्रिज हिस्ट्री आव इण्डिया जिल्द १ पृ० १५३ मे 'द' हिस्ट्री आव जैनाज | ३४. पोलिटिकल हिस्ट्री ऑफ एन्मियन्ट इण्डिया पृ० १७
हमारी दृष्टि से भ० पाश्र्व के समय मे जो विद्वानों में मतभेद दृष्टिगोचर होता है उसका मूल कारण किसी ने भ० पार्श्व का निर्वाण भ० महावीर मे २५० वर्ष पूर्व माना है, किसी ने भ० पार्श्व के जन्म के २५० वर्ष पश्चात् महावीर का जन्म माना है और किमी ने भ० पार्श्व के जन्म के पश्चात् २५० वर्ष बाद भ० महावीर का निर्माण माना है । -- लेखक
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