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________________ सापना काल : संगम के उपसर्ग १४६ वहाँ से तोसलि के उद्यान मे पधारकर पुन: ध्यान किया। संगम ने चोरी कर के भारी शस्त्रास्त्र महावीर के सन्निकट लाकर रखे । लोगों ने चोर समझकर महावीर को पकड़ा । परिचय पूछा गया, पर, प्रश्न का उत्तर न मिलने से तोसलि क्षत्रिय ने छद्मवेशी श्रमण समझकर फांसी की सजा दी। फाँसी के तख्ते पर चढाकर गर्दन में फांसी का फन्दा डाल दिया। ओर नीचे से तख्ते को हटाया। पर ज्यों ही तख्ता हटा कि फन्दा टूट गया। पुनः फंदा लगाया और पुनः टूट गया। इस प्रकार सात बार फंदा टूट जाने पर सभी चकित रह गये। क्षत्रिय को सूचना दी, उसने प्रभु को कोई महापुरुष समझकर मुक्त कर दियो। ___ भगवान् वहाँ से सिद्धार्थपुर आये, संगम जो शिकारी कुत्ते की तरह महावीर के पीछे लगा हुआ था, वहाँ भी उसने महावीर पर चोरी का आरोप लगाकर पकडवाया, पर कौशिक नामक घोड़े के व्यापारी ने भगवान का परिचय देकर मुक्त करवाया । २०७ भगवान् वहाँ से व्रजगांव पधारे । उस दिन पर्व का पुनीत दिन होने से सब घरों में खीर बनी हुई थी। भगवान भिक्षा के लिए पधारे। पर संगम ने सर्वत्र अनेषणीय कर दिया। भगवान् भिक्षा बिना लिए ही लौट आए । २१८ छह मास तक अगणित कष्ट देने के पश्चात् भी महावीर साधना पथ से विचलित नहीं हुए तो संगम का धैर्य ध्वस्त हो गया। वह हताश और निराश हो गया । उसका मुख मलिन हो गया। वह हारा हुआ भगवान् के पास आकर बोला-"भगवन् ! देवराज इन्द्र ने जो आपके सम्बन्ध में कहा वह पूर्ण सत्य है । मैं भग्न प्रतिज्ञ हूं, आप सत्य प्रतिज्ञ हैं । २९९ अब आप प्रसन्नता से भिक्षा के लिए पधारिये। मैं किसी प्रकार को विघ्न-बाधाएँ उपस्थित नहीं करूँगा।" छह मास तक मैंने अनेक कष्ट दिये है, जिससे आप सुखपूर्वक संयम साधना नहीं कर सके हैं। अब आनन्द के साथ साधना कीजिए, मैं जा रहा हूँ। अन्य देवों को भी मैं रोक दूंगा। वे आपको कोई कष्ट नही देंगे।.. संगम के कथन पर भगवान् ने कहा-'संगम ! मैं किसी की प्रेरणा से
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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