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में पीड़ा उत्पन्न की। पर, भगवान जब प्रतिकूल उपसगों से तनिक भी प्रकम्पित नहीं हुए तब अनुकल उपसर्ग प्रारम्भ किए । प्रलोभन के और विषय वासना के मोहक दृश्य उपस्थित किये । गगन-मण्डल से तरुण सुन्दरियाँ उतरी, हाव-भाव
और कटाक्ष करती हुई प्रभु से काम-याचना करने लगी। पर महावीर तो निष्प्रकंप थे, प्रस्तरमूर्ति ज्यों, उन पर कोई असर नहीं हुआ। वे सुमेरु की तरह ध्यान में अडिग रहे । एक रात भर मे बीस भयंकर उपसर्ग २०४ देने पर भी उनका मुख कुन्दन-सा चमक रहा था । मानो मध्याह्न का सूर्य हो।
पौ फटी, अधेरा छंट गया, धीरे-धीरे उषा की लाली चमक उठो, और सूर्य की तेजस्वी किरणें धरती पर उतरी । महावीर ने ध्यान से निवृत्त हो आगे प्रयाण किया। यद्यपि महावीर की अदम्य-शक्ति से एक रात में ही मगम की समस्त आशाओं पर तुषारापात हो गया था, तथापि वह धीठ प्रभु का पीछा नहीं छोड़कर साथ रहा, और 'बालुका' 'सुभोग' 'सुच्छेत्ता' 'मलय' और हस्तीशीर्ष आदि नगरों में जहां भी भगवान् पधारे वहाँ, अपनी काली करतूतो का परिचय देता रहा । २९५
जब भगवान तोसलि गांव के उद्यान मे ध्यानस्थ थे तब वह सगम श्रमण की वेषभूषा पहनकर गाँव में गया और घरों में सेध लगाने लगा। पकड़ा जाने पर बोला-"मुझे क्यों पकड़ते हो ?, मैंने गुरु आज्ञा का पालन किया है । यदि तुम्हें पकड़ना ही है तो उद्यान मे जो ध्यान किये मेरे गुरु खड़े हैं, उन्हें पकड़ो।" उसी क्षण लोग वहाँ आये और महावीर को पकडने लगे। रस्सियो से जकड़कर गांव में ले जाने लगे कि महाभूतिल ऐन्द्रिजालिक ने भगवान् को पहचान लिया और लोगों को डांटते हुए समझाया । लोग संगम के पीछे दौड़े तो उसका कहीं अतापता नही लगा । २९१
जब भगवान् मोसलि ग्राम पधारे तब संगम ने वहां पर भी भगवान पर तस्करकृत्य का आरोप लगाया। भगवान् को पकडकर राज्य परिषद् में ले जाया गया, तब वहाँ सम्राट् सिद्धार्थ के स्नेही-साथी सुमागद्य राष्ट्रीय (प्रान्त का अधि पति-वर्तमान कमिश्नर जैसा) बैठे थे। उन्होंने भगवान का अभिवादन किया और बन्धन मुक्त करवाया।