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________________ सापना काल : शुल-पाणि का उपद्रय रात्रि में शूलपाणि के भयंकर अट्टहास को श्रवण कर ग्रामवासियों ने उसी समय अनुमान लगा लिया था कि मंदिर में स्थित वह साधु सदा के लिए चल बसा है । और प्रात:काल के पूर्व जब संगीत की सुमधुर स्वर लहरियां सुनी तो उनका अनुमान और अधिक दृढ़ हो गया कि साधु की मृत्यु से ही यक्ष अपने हृदय की प्रसन्नता संगीत के माध्यम से अभिव्यक्त कर रहा है । उत्पल नामक एक निमित्तज्ञ अस्थिक ग्राम में रहता था। पहले वह भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा में श्रमण बना था। पर कुछ कारणों से श्रमणत्व से भ्रष्ट हो गया था। जब उसे भगवान् महावीर के यक्षायतन में ठहरने के समाचार ज्ञात हुए तो अनिष्ट की कल्पना से उसका हृदय धड़क उठा।" प्रातः इन्द्रशर्मा पुजारी के साथ वह यक्षायतन पहुँचा, पर अपनी कल्पना से विपरीत यक्ष के द्वारा भगवान् महावीर को अचित देखकर उसके आश्चर्य का आर-पार नहीं रहा । वे दोनों ही प्रभु के चरणों में नमस्कार करने लगे-"प्रभो, आपका आत्म-तेज अपूर्व है । आपने यक्षप्रकोप को शान्त कर दिया है।" निमित्तज्ञ ने निवेदन किया-"प्रभो, आपने जो रात्रि के पश्चिम प्रहर में दस स्वप्न देखे हैं उनका फल इस प्रकार होगा (१) आप मोहनीय कर्म को नष्ट करेंगे। (२) सदा-सर्वदा आप शुक्ल ध्यान में रहेंगे। (३) विविध ज्ञानमय द्वादशाङ्ग श्रुत की प्ररुपणा करेंगे। (४) .... ? (५) चतुर्विध सघ आपकी सेवा में संलग्न रहेगा। (६) चतुर्विध देव भी आपकी सेवा में रहेंगे। (७) संसार सागर को आप पार करेंगे। (८) केवल ज्ञान और केवल दर्शन को आप प्राप्त करेंगे। (8) यत्र-तत्र सर्वत्र आपकी कीर्ति-कौमुदी चमकेगी। (१०) समवरण में सिंहासन पर विराजकर आप धर्म की संस्थापना
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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