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________________ अमिfrosof १४६ वहत्ता दाणं दायारेहिं परिभाएत्ता दाइयाणं परिभाएत्ता जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे मग्गसिरबहुले तस्स णं मग्गसिरबहुलस्स दसमीपक्वेणं पाईणगामिणीए छायाए पोरिसीए अभिनिविट्टाए पमाणपत्ताए सुव्वएणं दिवसेणं विजएणं मुहुत्तेणं चंदप्पभाए सीयाए सदेवमयासुराए परिसाए समणुगम्ममाणमग्गे संखियचक्कियनंगलियमुह मंगलियवद्धमाणगपूसमाणगघंटियगणेहिं ताहि इट्ठाहि कंताहिं पियाहिं मणुष्णाहिं मणामाहिं ओरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं मियमहुरसस्सिरीयाहिं वग्गूहिं अभिनंदमाणा अभिसंधुवमाणा य एवं व्यासी ॥ १११ ॥ अर्थ - श्रमण भगवान् महावीर को प्रथम गृहस्थधर्म में प्रवेश करने के पूर्व भी उत्तम, आभोगिक-- जो कभी भी नष्ट न हो ऐसा अवधि ज्ञान व अवधि दर्शन प्राप्त था । उसमे श्रमण भगवान 'अभिनिष्क्रमण के योग्य काल आ गया हैं' ऐसा देखते हैं | इस प्रकार देखकर जानकर, हिरण्य को त्यागकर, सुवर्ण को त्याग कर, धन को त्यागकर, राज्य को त्याग कर, राष्ट्र को त्यागकर, इसी प्रकार सेना, वाहन, धन-भण्डार, कोष्ठागार को त्याग कर, नगर, अन्तःपुर, जनपद को त्यागकर, विशाल धन, कनक, रत्न, मणि मुक्ता, शंख, राजपट्ट, राजावर्त, प्रवाल, माणिक आदि सत्वयुक्त, सारयुक्त सभी द्रव्यों को छोड़कर, अपने द्वारा नियुक्त देने वालों से वह सम्पूर्ण धन खुला करके उसको दान रूप में देने का विचार करके अपने गोत्र के लोगों में सम्पूर्ण धन-धान्य, हिरण्य, रत्न, आदि को प्रदान करके, हैमन्त ऋतु का प्रथम मास और प्रथम पक्ष अर्थात् मृगसर कृष्णा दशमी का दिन आने पर जब छाया पूर्व दिशा की ओर ढल रही थी, प्रमाणयुक्त पौरसी आई थी, उस समय सुव्रत नामक दिन में, विजय नामक मुहूर्त में भगवान चन्द्रप्रभा नामक पालकी में ( पूर्व दिशा की ओर मुख करके ) बैठे । पालकी के पीछे देव, दानव और मानवों के समूह चल रहे थे । उस जलूस में कितने ही देव आगे शंख बजा रहे थे, कितने ही देव आगे चक्र
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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