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को सुशोभित करें, परन्तु भगवान महावीर ने स्पष्ट रूप से निषेध करते हुए संयम ग्रहण की अत्युत्कट भावना अभिव्यक्त की ।१८६ ज्येष्ठ भ्राता नन्दिवर्धन ने स्नेह-विह्वल होकर कहा-बन्धुवर ! इस समय आपका गृह त्याग का कथन घाव पर नमक छिड़कने जैसा है, कुछ समय तक आप घर में और ठहरें।८७ ज्येष्ठ भ्राता के आग्रह से वे दो वर्ष गृहस्थाश्रम में रहे । पर उस समय उन्होंने सचित्त जल का उपयोग नही किया। रात्रि भोजन नहीं किया, सर्वस्नान नहीं किया। वे पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए निर्लेप रहे ।
उदारमना महावीर ने उनतीसवाँ वर्ष दीन दुखियों के उद्धार में लगाया। वे प्रतिदिन प्रातः एक प्रहर दिन चढ़े तक १ करोड ८ लाख स्वर्ण१८० (सिक्का विशेष) का दान करते थे। उन्होने एक वर्ष में तीन अरब अठासी करोड़ अस्सी लाख स्वर्ण मुद्राएँ दान में दी।
___ अभिनिष्क्रमण का संकल्प करते ही नौ लोकान्तिक देव वहाँ उपस्थित हुए। उन्होंने भगवान् के निश्चय का अनुमोदन करते हुए कहा-'हे भगवन् आपकी जय हो ! अब आप शीघ्र ही धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करे जिससे सभी जीवो का कल्याण हो।
मूल :
पुबि पि य णं समणस्स भगवओ महावीरस्स माणुस्साओ गिहत्थधम्माओ अणुत्तरे आहोहिए अप्पडिवाई नाणदंसणे होत्था। तए णं ममणे भगवं महावीरे तेणं अणुत्तरेणं आहोहिएणं नाणदंसणेणं अप्पणो निक्खमणकालं आभोएइ, अप्पणो निक्खमणकालं आभोइत्ता चेच्चा हिरणं चेच्चा सुवन्न चेच्चा धणं चेच्चा रज्जं चेच्चा रटुं एवं वलं वाहणं कोसं कोट्ठागारं चेच्चा पुरं चेच्चा अंतेउरं चेच्चा जणवयं चेच्चा विपुलधणकणगरयणमणिमोत्तियसंखसिलप्पवालरत्तरयणमाइयं संतसारसावतेज्जं विच्छड्डइत्ता विगो