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________________ १५० कल्प सूत्र धारी चल रहे थे । कितने ही हलधारी चल रहे थे। कितने ही गले मे स्वर्ण का हल लटकाने वाले विशेष प्रकार के भाट लोग चल रहे थे। कितने ही मुंह से मीठा शब्द बोलने वाले थे। कितने ही वर्धमानक अर्थात् अपने कंधों पर दूसरों को बैठाए हुए थे। कितने ही चारण थे, कितने ही घण्टे बजाने वाले घांटिक थे। इन सभी से घिरे हुए, भगवान् को पालकी मे बैठे हुए देखकर भगवान् के कुल महत्तर (कुल के वृद्ध पुरुष) इष्ट प्रकार की मनोहर, कर्णप्रिय, मन को प्रमुदित करने वाली उदार, कल्याणरूप, शिवरूप, धन्य मगलरूप परिमित, मधुर, और शोभायुक्त वाणी से भगवान् का अभिनन्दन करते है, वे भगवान् की स्तुति करते हुए इस प्रकार कहने लगे - मूल : जय जय नंदा ! जय जय भद्दा ! भइते अभग्गेहिं णाणदसणचरित्तेहिं अजियाइं जिणाहि इंदियाई, जियं च पालेहि ममणधम्मं, जिअविग्धो वि य वसाहि तं देव ! सिद्धिमज्झे निहणाहि रागदोसमल्ले तवेणं, धिइधणियबद्धकच्छे मदाहि अट्ठकम्मसत्तू भाणेणं उत्तमेणं सुक्केणं अप्पमत्तो हाहि आराहणपडागं च वीर ! तेलोक्करंगमज्झ, पावय वितिमिरमणुत्तरं केवलं वरणाणं, गच्छ य मोक्खं परमपयं जिणवरोवदिट्टेणं मग्गेणं अकुडिलेणं, हंता परीसहचमू, जय जय खत्तियवरवसहा ! बहई दिवसाई बहूई पक्खाई बहूई मासाई बहूई उऊई बहूई अयणाई बहूई संवच्छराइं अभीए परीसहोवसग्गाणं खंतिखमे भयभेरवाणं धम्मे ते अविग्धं भवउ त्ति कटु जय जय सई पउंजंति ॥११२॥ ___ अर्थ-हे नन्द ! आपकी जय हो । विजय हो ! हे भद्र ! आपकी जय हो ! जय हो ! आपका भद्र (कल्याण) हो ! निरतिचार ज्ञान दर्शन और चारित्र से तुम नही जीती हुई इन्द्रियों को जीतो, जीते हुए श्रमण धर्म का पालन करो।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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