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________________ १३८ कल्प सूत्र गया। जिसको किसी वस्तु की आवश्यकता है वह बिना मूल्य दिये दुकानों से प्राप्त कर सकता है, इस प्रकार की व्यवस्था की गई। खरीदना और बेचना बन्द कर दिया गया । किसी भी स्थान पर जप्ती करने वाले राजपुरुषों का प्रवेश निषिद्ध कर दिया गया। जिस किसी पर ऋण है उसे स्वयं राजा चुकाएगा, जिससे किसी को भी ऋण चुकाने की आवश्यकता न रहे, ऐसी व्यवस्था की गई । उस उत्सव में अनेक प्रकार के अपरिमित पदार्थ एकत्रित किये गये । उत्सव में सभी को अदण्डनीय कर दिया गया । उत्तम गणिकाओ और नाटक करने वालों के नृत्य प्रारम्भ किये गये । उत्सव में निरन्तर मृदंग बजते रहे, ताजा मालाएँ लटकाई गईं, नगर के तथा देश के सभी मानव प्रमुदित क्रीडा परायण हुए, दस दिन तक इस प्रकार का उत्सव मनाते रहे । मूल : तए णं से सिद्धत्थे राया दसाहियाए ठिइपडियाते वट्टमाfre सइ य साहस्सिए य सयसाहस्सिए य जाए य दाए य भाए य दलमाणे य दवावेमाणे य सइए य साहस्सिए य सयसाहस्सिए य लंभे पडिच्छेमाणे य पडिच्छावेमाणे य एवं वा विहरइ ॥ १०० ॥ अर्थ - उसके पश्चात् वह सिद्धार्थ राजा दस दिन तक जो उत्सव चला उसमें सैकड़ों हजारों और लाखों प्रकार के यागो ( पूजा सामग्रियों) को दानों और भोगों (विशेष देय हिस्सा) को देता और दिलवाता तथा सैकडो - हजारों और लाखों प्रकार की भेंट स्वीकार करना और करवाता रहा । मूल : तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठिइपडिय करेंति, तइए दिवसे चंदसूरस्स दंसणिय करिंति, छट्ठे दिवसे जागरियं करेंति, एक्कारसमे दिवसे विइक्कते निव्व
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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