________________
मन्म महोत्सव
१३६ त्तिए असुतिजातकम्मकरणे संपत्ते बारसाहदिवसे विउलं असणपाणखाइमसाइमं उवक्खडाविति, उवक्खाडावित्ता मित्तनाइनियगसयणसंबंधिपरिजणं नायए य खत्तिए य आमंतेत्ता तओ पच्छा व्हाया क्यबलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहित भोयणवेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगया तेणं मित्तनाइनियगसयणसंबंधिपरिजणेणं नायएहि य सद्धिं तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणा विसाएमाणा परिभुजेमाणा परिभाएमाणा विहरंति ॥१०१॥
अर्थ--उसके पश्चात् श्रमण भगवान महावीर के माता-पिता प्रथम दिन कुल परम्परा के अनुसार पुत्र जन्म निमित्त करने योग्य अनुष्ठान करते है । तृतीय दिन चन्द्र और सूर्य के दर्शन का उत्सव करते हैं। छ8 दिन रात्रि जागरण का उत्सव करते है । ग्यारहवां दिन व्यतीत होने के पश्चात् सर्वप्रकार की अशुचि निवारण होने पर जब बारहवा दिन आया तब विपुल प्रमाण मे भोजन पानी विविध स्वादिम और खादिम पदार्थ तैय्यार कराते है, तैय्यार कराके अपने मित्रों, जातिजनों, स्वजनों और अपने साथ सम्बन्ध रखने वाले परिवारवालों को तथा ज्ञातृवंश के क्षत्रियों को आमंत्रण देते है। पुत्र जन्म-समारोह में आने के लिए निमंत्रित करते है। फिर स्नान किए हुए, बलिकर्म किए हुए टीले-टपके और दोष निवारण हेतु मगलरूप प्रायश्चित किए हुए, श्रेष्ठ और उत्सव में जाने योग्य मंगलमय वस्त्रों को धारण किए हुए, भोजन का समय होने पर भोजन मण्डप में आते हैं। भोजन मण्डप में आकर उत्तम सुखासन पर बैठते है और मित्रों, ज्ञातिजनों, स्वजनों, परिजनों व ज्ञातृवंश के क्षत्रियों के साथ विविध प्रकार के भोजन पान खाद्य और स्वाद्य का आस्वादन करते है-स्वयं भोजन करते हैं और दूसरों को करवाते है । मूल :
जिमियमुत्तोत्तरागया वि य णं समाणा आयंता चोक्खा