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________________ जन्म-महोत्सव के पश्चात् वे जहां सिद्धार्थ राजा है, वहां आते हैं, आकर दोनों हाथ जोड़कर मस्तिष्क पर अंजलि करके सिद्धार्थ राजा को उनका वह आदेश पुनः अपित करते हैं अर्थात् "आपने जो आदेश प्रदान किया था उसके अनुसार सभी कार्य हम कर आए हैं" यह सूचना देते हैं । मल : तए णं से सिद्धत्थे राया जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता जाव मव्वोरोहेणं सव्वपुप्फगंधवत्थमल्लालंकारविभूसाए सव्वतुडियसदनिनाएण महया इड्ढीए महया जुतीए महया बलेणं महया वाहणेणं महया समुदएणं महया वरतुडियजमगसमगप्पवाइएणं संखपणवपडहभेरिझल्लरिखरमुहिहुडुक्कमुखमुइंगदुंदुहिनिग्घोसणादितरवेणं उस्सुकं उक्कर उक्किट्ठ अदेज्जं अमेज्जं अभडप्पवेसं अडंडकोडंडिमं अधरिमं गणियावरनाडइज्जकलियं अणगतालायराणुचरियं अणु यमुइंगं अमिलायमल्लदामं पमुइयपक्कीलियसपुरजणजाणवयं दसदि. वसहिइपडियं करेइ ॥६६ ___ अर्थ-उसके पश्चात् सिद्धार्थ राजा जहाँ अखाड़ा अर्थात् जहां सार्वजनिक उत्सव करने का स्थान है वहां आता है, आकर के यावत् अपने अन्तःपुर के साथ सभी प्रकार के पुष्प, गंध, वस्त्र, मालाएं आदि अलंकारों से अलंकृत होकर, मभी प्रकार के वाद्यों को बजवा करके, बड़े वैभव के साथ, महती द्युति के साथ, महान् लश्कर के साथ, बहुत से वाहनो के साथ, बृहद् समुदाय के साथ और एक साथ बजते हुए अनेक वाद्यों की ध्वनि के साथ अर्थात् शंख, पणव, भेरी, झल्लरी खरमुखी हुडूक, ढोल, मृदंग और दुंदुभी आदि वाद्यों की ध्वनि के साथ दस दिन तक अपनी कुलमर्यादा के अनुसार उत्सव करता है । इस उत्सव के समय नगर में से चुंगी (जकात) तथा कर लेना बन्द कर दिया
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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