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कल्प पून
नुप्रियो ! आपने जो कहा है वह अन्यथा नहीं है। आपका कथन यथार्थ है। आपका यह कथन हमें इष्ट है, स्वीकृत है, मन को पसन्द है। हे देवानुप्रियो ! यह कथन सत्य है जो आपने कहा है। इस प्रकार वे उन स्वप्नों को विनय के साथ स्वीकार करते हैं। स्वीकार कर स्वप्नलक्षणपाठकों को विपुल पुष्प-सुगन्धित चूर्ण, वस्त्र, मालाएं, आभूषण आदि प्रदान कर उनका अत्यन्त सत्कार सम्मान करते है। सत्कार-सम्मानकर उनके सम्पूर्ण जीवन के योग्य प्रीतिदान देते हैं । इस प्रकार प्रीतिदान देकर उन्होंने स्वप्नलक्षण-पाठकों को सम्मान पूर्वक विदा किया।
विवेचन-प्रीतिदान का भावात्मक अर्थ है-दाता प्रसन्न होकर अपनी इच्छा से जो दान देता है। जिस दान में अर्थी की ओर से याचना या प्रस्ताव रखा जाता है और उस पर मन नहीं होते हुए भी दाता को देना पड़ता है वह प्रीतिदान नहीं है।
प्रीतिदान का व्यावहारिक अर्थ है-इनाम या पुरस्कार, पारितोषिक।१४ मूल :
तए णं से सिद्धत्थे खत्तिए सीहासणाओ अब्भुहोइ, सीहासणाओअन्मुहित्ता जेणेव तिसला खत्तियाणीजवणियंतरिया तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता तिसलं खत्तियाणि एवं वयासी ॥७॥
अर्थ-उसके पश्चात् सिद्धार्थ क्षत्रिय अपने सिंहासन से उठते है । सिंहा सन से उठकर जहां त्रिशला क्षत्रियाणी पर्दे के पीछे थीं वहाँ आते हैं, वहाँ आकर त्रिशला क्षत्रियाणी को इस प्रकार कहते हैंमूल :
एवं खलु देवाणुप्पिए ! सुविणसत्थंसि बायालीसं सुमिणा जाव एगं महासुमिणं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुझति ॥२०॥