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________________ अर्थ--हे देवानप्रिये ! इस प्रकार निश्चय ही रवप्नशास्त्र में बयालीस स्वप्न कहे हैं-'तीर्थकर, चक्रवर्ती, माण्डलिक राजा आदि जब गर्भ में आते हैं तब उनकी माता तीस महास्वप्नों में से कोई भी एक महास्वप्न देखकर जागृत होती है, वहां तक सम्पूर्ण वृत्त, जो स्वप्नलक्षणपाठकों ने कहा था, त्रिशला क्षत्रियाणी को सुनाते हैं। मूल: इमे य णं तुमे देवाणुप्पिए ! चोइस महासुमिणा दिठा, तं० ओराला णं तुमे जाव जिणे वा तेलोक्कनायए धम्मवरचक्कवट्टी॥१॥ ___अर्थ-हे देवानुप्रिये ! तुमने जो ये चौदह महास्वप्न देखे हैं, वे सभी बहुत ही श्रेष्ठ हैं, यहां से लेकर तुम तीन लोक के नायक, धर्मचक्र का प्रवर्तन करने वाले, जिन बनने वाले पुत्र को जन्म प्रदान करोगी, यहाँ तक का सम्पूर्ण वृत्त त्रिशला क्षत्रियाणी को सुनाते हैं। मल: तए णं सा तिसला खतियाणी सिद्धत्थस्स रन्नो अंतिए एयमढं सोच्चा निसम्म हट्तुट्ठा जाव हियया करयल जाव ते सुमिणे सम्म पडिच्छइ ॥२॥ अर्थ-उसके पश्चात् वह त्रिशला क्षत्रियाणी सिद्धार्थ से यह वृत्त सुनकर, समझकर बहुत प्रसन्न हुई, अत्यधिक सन्तोष को प्राप्त हुई । अत्यन्त प्रसन्न होने से उसका हृदय विकसित हुआ। वह दोनों हाथ जोड़कर स्वप्नों के अर्थ को सम्यक प्रकार से स्वीकार करती है। मल: सम्म पडिच्छित्ता सिद्धत्थेणं रन्ना अन्भणुन्नाया समाणी नाणामणिरयणभत्तिचित्ताओ भद्दासणाओ अब्भुठेइ अब्भुद्वित्ता
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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