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________________ स्वप्न-फल कपन ११५ कमी होगा। उसके पास विराट सेना व वाहन होगे। चतुर्दिक समुद्र के अन्त पर्यन्त भूमण्डल का स्वामी चक्रवर्ती सम्राट् होगा। अथवा तीन लोक का नेता धर्म चक्रवर्ती, धर्मचक्र प्रवर्तन करने वाला जिन नीर्थकर बनेगा। इस प्रकार हे देवानुप्रिय ! त्रिशला क्षत्रियाणी ने उदार स्वप्न देखे हैं, यावत् हे देवानुप्रिय ! त्रिशला क्षत्रियाणी ने जो स्वप्न देखे है वे आरोग्य करने वाले, तुष्टि करने वाले, दीर्घ आयुष्य के सूचक. कल्याण और मंगल करने वाले है। मल : तए णं से सिद्धत्थे राया तेसिं सुविणलक्खणपाढगाणं अंतिए एयमह सोच्चा निसम्म हद्वतुह जाव हियए करयल जाव ते सुमिणलक्खणपाढगे एवं वयासी ॥७७॥ अर्थ-उसके पश्चात् वह सिद्धार्थ राजा स्वप्न-लक्षणपाठको से यह वृत्त सुनकर, समझकर, अत्यन्त प्रमन्न हुआ, अत्यधिक तुष्ट हुआ। प्रसन्नता से उसका हृदय फूलने लगा। उमने हाथ जोडकर स्वप्नलक्षणपाठकों से इस प्रकार कहा - मूल : एवमेयं देवाणुप्पिया ! तहमेयं देवाणुप्पिया ! अवितहमेयं देवाणुप्पिया ! इच्छियमेयं देवाणुप्पिया ! पडिच्छियमेयं देवाणुप्पिया ! इच्छियपडिच्छियमेयं देवाणुप्पिया ! सच्चे णं एसम8 से जहेयं तुम्भे वयह त्ति कटु ते सुमिणे सम्मविणएणं पडिच्छइ, ते सुमिणे २ ता ते सुमिणलक्खणपाढए णं विउलेणं पुष्पगंधवत्थमल्लालंकारेणं सरकारेइ सम्माणेइ, सस्कारिता सम्माणित्ता विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं दलपति, विपुलं जीवयारिहं पीइदाणं दलइत्ता पडिविसज्जेइ ॥७॥ अर्थ-हे देवानुप्रियो ! आपने जो कहा है वह इसी प्रकार है । हे देवा
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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