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________________ ७ सूर्य को देखने से अज्ञानरूप अन्धकार नाश करके ज्ञान का उद्योत फैलाएगा। ८ ध्वजा-दर्शन से अर्थ है धर्म रूप-ध्वजा को विश्व क्षितिज पर लहरायेगा, या ज्ञात-कुल में ध्वजा रूप होगा। ९ कलश देखने से कुल या धर्म रूपी प्रासाद के शिखर पर यह कलशरूप होगा। १० पद्मसरोवर को देखने से देव-निर्मित स्वर्णकमल पर उनका आसन लगेगा। ११ समुद्र को देखने से समुद्र को तरह अनन्त ज्ञान-दर्शन रूप मणिरत्नों का धारक होगा। १२ विमान को देखने से वैमानिक देवताओं का पूज्य होगा। १३ रत्नराशि को देखने से मणि-रत्नों से विभूषित होगा। १४ नि म अग्नि को देखने से धर्मरूप सुवर्ण को विशुद्ध व निर्मल करने वाला होगा। मूल: से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विणणायपरिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते सुरे वीरे विक्कते विच्छिण्णविपुलबलवाहणे चाउरंतचक्कवट्टी रज्जवई राया भविस्सइ जिणे वा तिलोक्कनायए धम्मवरचक्कवट्टी, तं ओराला णं देवाणुप्पिया ! तिसलाए खत्तियाणीए सुमिणा दिहा जाव आरोग्गतुहिदीहाउकल्लाणमंगलकारगा णं देवाणुप्पिया! तिसलाए खत्तियाणीए सुमिणा दिहा ॥७६॥ अर्थ-और वह पुत्र भी बाल्यावस्था पूर्णकर, पढ़ लिखकर जब पूर्ण ज्ञान वाला होगा, यौवन को प्राप्त करेगा तब वह शूर, वीर और अत्यन्त परा
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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