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________________ दे . अर्थ-अनन्तर सिद्धार्थ क्षत्रिय प्रभात काल होने पर कौटुम्बिक पुरुषों की बुलवाता है। बुलवाकर के इस प्रकार कहता है-हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही आज बाहर की उपस्थानशाला (राज-सभा भवन) को विशेष रूप से सुगन्धित जल से सिंचन करो। साफ करके उसका (गोबर आदि से) लेपन करो, स्थानस्थान पर श्रेष्ठ सुगन्धित पञ्चवर्णों के पुष्प समूह से सुशोभित करो । काले अगर, उत्तम-कुन्दरु तुर्की धूप से सुगन्धित बनाओ। यत्र-तत्र सुगन्धित चूर्णो को छिटककर सुगन्धित गुटिका के समान बनाओ। स्वयं करो, दूसरों से करवाओ, और करके तथा करवाकरके, वहाँ पर एक सिंहासन रक्खो, सिंहासन रखकर (कार्य सम्पन्न करके) मुझे मेरी आज्ञा पुन. शीघ्र ही लौटाओ अर्थात् सूचित करो। मल: तए णं ते कोडुबियपुरिसा सिद्धत्येणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ट जाव हियया करयल जाव कटु ‘एवं सामि !' त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, एवं सामि ! त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणित्ता सिद्धत्थस्स खत्तियस्स अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता खिप्पामेव सविसेसं बाहिरियं उवट्ठाणसालं गंधोदयसित्त जाव सीहासणं रयावेंति, सीहासणं रयावित्ता जेणेव सिद्धत्ये खत्तिए तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु सिद्धत्थस्स खत्तियस्स तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥५६॥ . अर्थ-अनन्तर वे कौटुम्बिक पुरुष सिद्धार्थ राजा के द्वारा इस प्रकार आदेश देने पर अत्यन्त प्रसन्न हुए, यावत् उल्लसित ह्दय से पूर्व की भांति मस्तिष्क पर अञ्जलि करके "हे स्वामिन् जैसी आपकी आज्ञा है" इस प्रकार कहकर आज्ञा को विनयपूर्वक वचन से स्वीकारते हैं। विनयपूर्वक स्वीकार
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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