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________________ सिद्धार्थ से स्वप्न-चर्चा करके सिद्धार्थ क्षत्रिय के पास से बाहर निकलते हैं। बाहर निकल करके जहां पर बाह्य उपस्थानशाला है, वहाँ आते है । आकर के शीघ्र ही उपस्थानशाला को सुगन्धित जल से सिंचन कर यावत् सिंहासन सजाते हैं। सिंहासन सजाकर जहा पर सिद्धार्थ क्षत्रिय है वहां पर आते हैं । आ करके करतल परिगृहीत दश नखों से मस्तिष्क पर शिरसावर्त के साथ अंजलिबद्ध होकर सिद्धार्थ क्षत्रिय की आज्ञा को पुनः समर्पित करते हैं । मूल : तए णं सिद्धत्थे खत्तिए कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिल्लियम्मि अह पंडरे पहाए रत्तासोयपगासकिसुयसुयमुहगुजद्धरागसरिसे कमलायरसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते य सयणिज्जाओ अब्भुटेइ ॥६०॥ ___ अर्थ-अनन्तर वह सिद्धार्थ क्षत्रिय प्रातःकाल के समय (उषः काल में) जब उत्पल कमल-विकसित होने लगे हैं, हरिणों के कोमल नेत्र खुलने लगे हैं, उज्ज्वल प्रभात होने लगा है, और रक्त अशोक के प्रभा-पुञ्ज सदृश, किंशुक के रंग के समान, तोते की चोंच और चिर्मी के अर्ध-लाल रंग के समान आरक्त बड़े बड़े जलाशयों में समुत्पन्न कमलों को विकसित करने वाला, सहस्ररश्मि, तेज से प्रदीप्त दिनकर उदित हुआ, तब शयनासन से उठते हैं अर्थात शयनकक्ष से बाहर आते हैं। सयणिज्जाओ अमुठित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पायपीढाओ पच्चोरुहिता जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता अट्टणसालं अणुपविसइ, अट्टणसालं अणुपविसित्ता अणेगवायामजोगवग्गणवामद्दणमल्लजुद्धकरणेहिं संते परिस्सते
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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