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________________ མ में वीर-पराक्रमी होगा। उसके पास विपुल बल, वाहन (सेना आदि) होंगे । वह राज्य का अधिपति राजा होगा । हे देवानुप्रिये ! तुमने जो महास्वप्न देखे हैं, वे उत्तम है", इस प्रकार सिद्धार्थ राजा त्रिशला रानी से दूसरी और तीसरी वार कहकर उसके चित्त को बढ़ावा देकर प्रफुल्लित करता है । --- मूल तणं सा तिसला खत्तियाणी सिद्धत्थस्स रन्नो अंतिए एयम सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा जाव हियया करयलपरिग्गा हयं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं वयासी ।। ५५ ।। अर्थ - उसके पश्चात् वह त्रिशला क्षत्रियाणी सिद्धार्थ राजा से इस प्रकार स्वप्न का अर्थ श्रवणकर हृदय में धारण कर हर्षित सन्तुष्ट यावत् प्रसन्न चित्तवाली होती हुई दोनों हाथ जोड़ कर, दस नख सम्मिलित करके मस्तिष्क पर शिरसावर्त युक्त अजलि करके इस प्रकार बोली -- मूल एवमेयं सामी ! तहमेयं सामी ! अवितहमेयं सामी ! असंदिद्धमेय सामी ! इच्छियमेयं सामी ! पडिच्छियमेयं सामी ! इच्छियपडिच्छियमेय' सामी! सच्चे णं एसमट्ठे से जहेयं तुब्भे वयह ति कट्टु ते सुमि सम्मं पडिच्छइ, ते सुमिणे सम्मं पडिच्छित्ता सिद्धत्थेणं रन्ना अन्भणुन्नायासमाणी नाणामणिरयणभत्तिचिताओ भासणाओ अब्मुट्ठेइ, अब्भुट्ठित्ता अतुरियमचवलमसंiताए अविलंबिया रायहंससरिसीए गईए, जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता एवं वयासी ॥ ५६ ॥ अथ - - ' हे स्वामिन् ! यह ऐसा ही है । जैसा आपने कहा है वैसा ही है । आपका कथन सत्य है । यह सन्देह रहित । यह इष्ट है । यह पुनः पुनः इष्ट है । हे स्वामिन ! यह इष्ट और अत्यधिक इष्ट है । आपने स्वप्नों का जो फल ·
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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