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सिद्धार्थ से थप्न चर्चा
कुलदिणयरं कुलआहारं कुलनंदिकरं कुलजसकरं कुलपायवं कुलविवर्द्धणकरं सुकुमालपाणिपायं अहीणसंपुन्नपंचेंदियसरीरं लक्खणवंजणगुणोववेयं माणुम्माणपमाणपडिपुन्नसुजायसव्वंगसुदरंगं ससिसोमाकारं कंतं पियं सुदंसणं दारयं पयाहिसि ॥ ५३ ॥
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अर्थ - हे देवानुप्रिये । तुमने उदार, कल्याणकारी, शिवरूप, मगलकारी, शोभायुक्त, अरोग्यप्रद " तुष्टिप्रद, दीर्घायुप्रद, कल्याणप्रद स्वप्न देखे हैं । हे देवानुप्रिये ! तुमने जो स्वप्न देखे है उनसे अर्थलाभ, भोगलाभ, पुत्रलाभ, सुख लाभ, और राज्यलाभ होगा । हे देवानुप्रिये ! तुम परिपूर्ण नो मास और साढ़े मात अहोरात्रि के व्यतीत होने पर हमारे कुलमें केतु रूप ( ध्वजा के समान) कुलप्रदीप, कुलपर्वत, ( कुल में पर्वत के समान उच्च) कुलावतंसक, ( मुकुट के समान) कुलतिलक, कुलकीर्तिकर, कुलवृत्तिकर, कुल दिनकर, कुलाधार, कुल में आनन्द करने वाला, कुल यशस्कर, कुल पादप ( वृक्ष के समान सब को आश्रय दाता ) कुल विवर्धक, सुकोमल हाथ पैर वाले, सम्पूर्ण पंचेन्द्रिय शरीर वाले, लक्षणो (स्वस्तिक आदि चिन्ह ) व्यंजनों (मष तिल आदि ) एवं गुणो से युक्त मान, उन्मान, प्रमाण से परिपूर्ण, शोभायुक्त, सर्वाङ्ग सुन्दर शरीर वाले, चन्द्र के समान सौम्याकार कान्त, प्रियदर्शी एव सुरूप बालक को जन्म दोगी ।
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मूल :--
सेवियां दारए उम्मुक्कबालभावे विन्नायपरिणयमित्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते सूरे वीरे विक्कते विच्छिन्नविउल बलवाहणे रज्जवई राया भविस्सइ, तं जहा ओराला गं तुमे जाव दोच्चं पि तच्च पि अणुवूहइ ॥ १४ ॥
अर्थ-- और वह बालक बालभाव ( बचपन ) से उन्मुक्त होकर समझदार तथा कलादि में कुशल बनकर युवावस्था को प्राप्त करने पर दान में शूर, संग्राम