________________
विशला का स्वप्न-वर्शन दिप्पमाणसोहं कमलकलावपरिरायमाणं पडिपुण्णसव्वमंगलभेयसमागर्म पवररयणपरायतकमलट्ठियं नयणभूसणकरं पभासमाणं सव्वओ चेव दीवयंत सोमलच्छीनिभेलणं सव्वपावपरिवज्जियं सुभं भासुरं सिम्खिरं सब्वोउयसुरभिकुसुमआसत्तमल्लदामं पेच्छइ सा रययपुन्नकलसं ६ ॥४२॥
अर्थ-उसके पश्चात् त्रिशलामाता कलश का स्वप्न देखती है। वह कलश विशुद्ध सुवर्ण की तरह चमक रहा था। निर्मल नीर से परिपूर्ण था, देदीप्यमान था, चारों ओर कमलोंसे परिवेष्टित था, सभी प्रकार के मंगल-चित्र उस पर चित्रित होने से वह सर्व मंगलमय था । श्रेष्ठ रत्नों से निर्मित कमल पर वह कलश सुशोभित था जिसे निहारते ही नेत्र आनन्द विभोर हो जाते थे। उसकी प्रभा चारों दिशाओं में फैल रही थी। जिससे सभी दिशाए आलोकित थी। लक्ष्मी देवी का वह प्रशस्त घर था । सभी प्रकार के दूषणों से रहित, शुभ और चमकदार व उत्तम था। सर्व ऋतुओं के सुगन्धित सुमनों की मालाएं कलश के कंठ पर रखी हुई थी, ऐसे चाँदी के पूर्ण कलश को त्रिशला माता स्वप्न में देखती है। मल:
तओ पुणो रविकिरणतरुणबोहियसहस्सपत्तसुरहितरपिंजरजलं जलचरपहगरपरिहत्थगमच्छपरिभुज्जमाणजलसंचयं महंतं जलंतमिव कमलकुवलयउप्पलतामररसपुंडरीयउरुसप्पमाणसिरिसमुदएहिं रमणिज्जरूवसोभं पमुइयंतभमरगणमत्तमहुकरिगणोकरोलिब्भमाणकमलं कादंबगबलाहगचक्काककलहंससारसगव्वियसउणगणमिहुणसेविज्जमाणसलिलं पउमिणिपत्तोवलग्गजलबिंदुमुत्तचित्तं च पेच्छइ सा हिययणयणकंतं पउमसरं नाम सरं सररुहाभिरामं १० ॥४३॥