SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भयं-उसके पश्चात् त्रिशलामाता स्वप्न में पद्मसरोवर को देखती है। बह पपसरोवर प्रातःकालीन सूर्य रश्मियों से विकसित सहस्र पंखुड़ियों वाले कमल के सौरभ से सुगन्धित था। उसका पानी कमल पराग के गिरने से रक्त और पीतवर्ण का दृष्टिगोचर हो रहा था। उसमें जलचर जीवों का समूह इतस्ततः परिभ्रमण कर रहा था। मत्स्यादि उसके मधुर जल का पान कर रहे थे । वह सरोवर अत्यन्त महरा और लम्बा चौड़ा था। सूर्य विकासी कमल, चन्द्र विकासी कमल, रक्त कमल, बड़े कमल, श्वेत कमल, इन सभी प्रकार के कमलों से वह शोभायुक्त था। वह अतीव रमणीय था । प्रमोद युक्त भ्रमर और मत्त मधुमक्षिकाएं कमलों पर बैठकर उनका रसपान कर रही थीं। उस सरोवर पर मधुर कलरव करने वाले कलहंस, बगुले, चक्रवाक, राजहंस, सारस, आदि विविध पक्षियों के युगल जल-क्रीड़ा कर रहे थे। उसमें कमलिनी दल पर गिरे हुए जल-कण सूर्य की किरणों से मुक्ता की तरह चमक रहे थे। वह सरोवर हृदय और नेत्रों को परम शान्ति प्रदाता था और कमलों से रमणीय था। ऐसे सरोवर को त्रिशला माता स्वप्न में देखती है । मल: तओ पुणो चंद किरणरासिसरिससिरिवच्छसोहं चउगमणपवढमाणजलसंचयं चवलचंचलुच्चायप्पमाणकल्लोललोलतोयपडुपवणाहयचालियचवलपागडतरंगरंगंतभंगखोखुब्भमाणसोभंतनिम्मलउक्कडउम्मीसहसंबंधधावमाणोनियत्तभासुरतराभिरामं महामगरमच्छतिमिरतिमिगिलनिरुद्धतिलितिलियाभिधायकप्परफेणपसरमहानईतुरियवेगसमागयभमगंगावत्तगुप्पमाणुच्चलंतपच्चोनियत्तभममाणलोलसलिलं पेच्छइ खीरोयसागारं सरयरयणिकरसोम्मवयणा ११ ॥४४॥ अर्थ-उसके पश्चात् वह त्रिशला माता स्वप्न में क्षीर सागर को देखती है। इस क्षीर सागर का मध्य भाग चन्द्र किरणों के समूह की तरह शोभायमान
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy