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समान वह रक्त वर्ण वाला था । कमल वनों को सुशोभित करने वाला, ज्योतिषचक्र पर संक्रमण करने के कारण उसके लक्षणों को बताने वाला था । वह आकाश का प्रदीप, हिम को नष्ट करने वाला, ग्रहमण्डल का मुख्य नायक, रात्रि को नष्ट करने वाला, उदय और अस्त के समय ही थोड़ी देर सुखपूर्वक देखा जा सकने योग्य, अन्य समयमे नही देखने योग्य, निशा मे विचरण करने वाले जारों व तस्करों का प्रमर्दक, शीत-हर्ता, मेरुपर्वत की प्रदक्षिणा करने वाला, अपनी सहस्रकिरणों से चमकते हुए चाँद और तारागणों की शोभा को नष्ट करने वाला था । ऐसे सूर्य को त्रिशलामाता देखती है ।
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मूल
तओ पुणो जच्चकणगलट्ठिपइट्ठियं समूहनीलरत्तपीयसुकिल्लसुकुमालुल्लसियमोरपिंछकयमुद्धयं फालियसंखंककु ददगरयरययकलसपंडरेण मत्थयत्थेण सीहेण रायमाणेणं रायमाणं भेत्त गगणतलमंडलं चैव ववसिएणं पेच्छइ सिवमउयमाख्यलयाहयपकँपमाणं अतिप्पमाणं जणपिच्छणिज्जरूवं ८ ॥४१॥
अर्थ — उसके पश्चात् त्रिशलामाता स्वप्न में ध्वजा देखती है । वह ध्वजा श्रेष्ठ सुवर्ण की यष्टि पर प्रतिष्ठित थी । वह नील, रक्त, पीत, श्वेत आदि विविध रंगों के वस्त्रों से निर्मित थी। हवा से लहराती हुई वह ध्वजा मयूरपंख के समान शोभित हो रही थी । वह ध्वजा अत्यधिक शोभा-सुन्दरता युक्त थी । उस ध्वजा के ऊर्ध्व भाग में श्वेत वर्ण का सिंह चित्रित था जो स्फटिक, टूटे शंख, अंक- रत्न, मोगरा, जल-कण एवं रजत-कलश के समान उज्ज्वल था । पवन प्रताड़ित ध्वजा इधर-उधर डोलायमान हो रही थी। जिससे यह प्रतीत होता था कि सिंह आकाशमण्डल को भेदन करने का उद्यम कर रहा हैं। वह ध्वजा सुखकारी मन्द मन्द पवन से लहरा रही थी, वह अतिशय उन्नत थी, मनुष्यों के लिए दर्शनीय थी, ऐसी ध्वजा त्रिशलामाता देखती है ।
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मूल
तओ पुणो जच्चकंचणुज्जलंतरूवं निम्मलजलपुन्नमुत्तमं