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त्रिशला का स्वप्न-दर्शन
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मूल :समणे भगवं महावीरे तिण्णाणोवगए आवि होत्या, साहरिज्जिस्सामि त्ति जाणह, साहरिज्जमाणे नो जाणह, साहरिए, मित्ति जाण ॥३१॥
अर्थ - श्रमण भगवान महावीर ( उस समय ) तीन ज्ञान से युक्त थे, "मेरा यहां से संहरण होगा" यह जानते थे, 'संहरण हो रहा है' यह नहीं जानते थे, 'सहरण हो गया है' यह जानते थे ।
मूल :
जं रयणि चणं समणे भगवं महावीरे देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए कुच्छीओ तिसलाए खत्तियाणीए वासिसगोताप कुच्छिसि भत्ताए साहरिए तं स्यणिं च णं सा देवानंदा माहणी सयणिज्जंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी swara ओराले कल्लाणे सिवे धन्ने मंगल्ले सस्सिरीए चोइस महासुमि तिसलाए खत्तियाणीए हडे त्ति पासित्ता णं पडिबुद्धा । तं जहा - गयउसह० गाहा ||३२||
अर्थ - जिस रात्रि को श्रमण भगवान महावीर जालंधर गोत्रीया देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि में से वासिष्ठ गोत्रीया त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में गर्भरूप मे संस्थापित किए गए उस रात्रि में वह देवानंदा ब्राह्मणी अपनी शय्या में अर्ध निद्रावस्था मे थी, उस समय उसने स्वप्न देखा कि मेरे उदार, कल्याणरूप, शिवरूप, धन्य, मंगलरूप श्रीयुक्त चौदह महास्वप्न त्रिशला क्षत्रियाणी हर लिए हैं। ऐसा देखकर वह जागृत हुई । वे चौदह महास्वप्न हैं हाथी वृषभ आदि ।
• त्रिशला का स्वप्न-दर्शन
मूल :
जं रयणि चणं समणे भगवं महावीरे देवाणंदाए माहणीए