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________________ अर्थ-उस काल उस समय श्रमण भगवान महावीर तीन ज्ञान से युक्त थे। मुझे यहां से संहरण किया जाएगा, यह वे जानते थे, संहरण करते हुए नहीं जानते थे, किन्तु 'संहरण' हो गया, यह जानते थे ।१४९ मूल: - तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जे से वासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे आसोयबहुले तस्स णं आसोय बहुलस्स तेरसीपक्खेणं बासीइराइंदिएहिं विइक्कतेहिं तेसीइमस्स राइंदियस्स अंतरा वट्टमाणे हियाणुकंपएणं देवेणं हरिणेगणेसिणा सकवयणसंदि?णं माहणकुडग्गामाओ नयराओ उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए कुच्छीओ खत्तियकुडग्गामे नयर नायणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवसगोत्तस्स भारियाए तिसलाए खत्तियाणीएवासिट्ठसगोत्ताए पुज्वरत्तावरत्तकालसमयसि हत्थुत्तराहि नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं अब्वाबाहं अव्वाबाहेणं कुञ्छिसि साहरिए ॥३०॥ __ अर्थ-उस काल उस समय जब बर्षाऋतु चलती थी और बर्षाऋतु का वह प्रसिद्ध तृतीय मास और पांचवां पक्ष चलता था अर्थात् आश्विन कृष्णा त्रयोदशी के दिन भगवान को स्वर्ग से च्युत हुए और देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्म में आये हुए बयासी रात्रि दिन व्यतीत हो गये थे, और तिरासीवां दिन चल रहा था, तब त्रयोदशी के दिन मध्यरात्रि के समय, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का योग आते ही हितानुकम्पी हरिणगमेषी देव ने शक की आज्ञा से माहणकुण्ड ग्राम नगर में से कोडालगोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण की भार्या जालंधर गोत्रीया देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि से क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के ज्ञातृक्षत्रिय, काश्यपगोत्रीय सिद्धार्थ क्षत्रिय की भायाँ वासिष्ठगोत्रीया त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में अपने दिव्य प्रभाव से सुख पूर्वक संस्थापित किया।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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