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नसहरण : त्रिशला की कुक्षि में
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पुद्गलों को दूर करता है और शुभ पुद्गलों को प्रक्षिप्त करता है । शुभ पुद्गलों को प्रक्षिप्त करके श्रमण भगवान महावीर को सुखपूर्वक बाधारहित त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में गर्भरूप में प्रस्थापित करता हैं।' और जो त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में गर्भ था उसे जालंधर गोत्रीया देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में गर्भरूप में स्थापित करता है। स्थापित करके जिस दशा से वह आया था उसी दिशा में पुनः चला गया ।'४८ मल:
उकिट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए उद्ध् याए सिग्घाए दिवाए देवगईए तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुदाणं ममं मज्झणं जोयणसाहस्सीएहिं विग्गहेहिं उप्पयमाणे २ जेणामेव सोहम्मेकप्पे मोहम्मवडिसए विमाणे सक्कंसि सीहासणंसि सक्के देविंदे देवराया तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सकस्स देविंदस्स देवरनो एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणइ ॥२८॥
अर्थ-(तब वह) उत्कृष्ट, त्वरित (शीघ्रतायुक्त) चपल, (स्फूतियुक्त) वेगयुक्त ऊपर की ओर जाने वाली शीघ्र दिव्य देवगति से तिरछे असंख्यात द्वीप समुद्रों के बीचो-बीच होकर और हजार-हजार योजन के विराट पदन्यास (कदम) भरता हुआ ऊपर चढता है, ऊपर चढ़कर के जिस ओर सौधर्म नामक कल्प में, सौधर्मावतंसक विमान में, शक्र नामक सिहासन पर देवेन्द्र देवराज शक्रन्द्र बैठा है वहां आता है। आकर के देवेन्द्र देवराज शक्र को उसकी आज्ञा शीघ्र ही समर्पित करता है अर्थात् आज्ञानुसार कार्य कर देने की सूचना देता है। मल:
- तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे तिण्णाणोवगए यावि होत्था, साहरिज्जिस्सामि ति जाणइ, साहरिज्जमाणे नो जाणइ, साहरिए मि त्ति जाणइ ॥२६॥