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________________ गर्भ संहरण : हरिगंगमेषी को आह्वान ७१ देवराईणं अरहते भगवते तहप्पगारेहितो वा अंत० पंत० तुच्छ० किविण० दरिद्द ० वणीमग जाव माहणकुलेहितो तहप्पगारेसु वा उम्गकुलेसु वा भोगकुलेसु वा राइनः नाय० खत्तिय० इक्खाग० हरिवंस० अण्णयरेसु वा तहप्पगारेसु विसुद्धजाति कुलवंसेसु माहरावित्तए ॥२४॥ अर्थ- तो अतीतकाल के, वर्तमानकाल के और भविष्यकाल के देवेन्द्र देवराज शकेन्द्र का यह कर्तव्य (कुलपरम्परा-कुलाचार) होता है कि वे अरिहंत भगवंत को तथाप्रकार के अंतकुल, प्रांतकुल, तुच्छकुल कृपणकुल, दरिद्रकुल भिक्षुककुल यावत् ब्राह्मणकुलों में से उन उग्रवंश के कुलों में भोगबश के कुलों में राजन्यवंश के कुलों में ज्ञातृवंश के कुलों में क्षत्रियवंश के कुलों में इक्ष्वाकु वंश के कुलों मे ह िवंश के कुलों में तथाप्रकार के अन्य भी विशुद्ध जाति कुल वाले वंशों में परिवर्तित कर देते है। मूल: तं गच्छ णं तुम देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीर माहणकुडग्गामाओ नयराओ उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोतस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए कुच्छिीओ खत्तियकुंडग्गामे नयरे नायाणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवसगोत्तस्स भारियाए तिसलाए खत्तियाणीए वासिट्ठ मगोत्ताए कुच्छिसि गन्भत्ताए साहराहि, साहरित्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पमेव पच्चप्पिणाहि ॥२५॥ अथ-(हरिणगमैषी को आदेश देते हुए) हे देवानुप्रिय ! तो तुम जाओ, श्रमण भगवान महावीर को ब्राह्मणकुण्ड ग्राम नगर से कोडाल गोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी जालंधर गोत्रीया देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में से क्षत्रिय कुण्ड ग्राम नगर के ज्ञातवंशीय क्षत्रियों के काश्यप गोत्रीय सिद्धार्थ
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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