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________________ स्स अक्खीणस्स अवेइयस्स अणिज्जिन्नस्स उदएणं जन्नं अरहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा अंतकुलेसु वा पंतकुलेसु वा तुच्छकुलेसु वा किविणकुलेसु वा दरिद० भिक्खागकुलेसु वा आयाइंसु वा३, नो चेव णं जोणीजम्मणनिक्खमणेणं निक्खमिसु वा ३ ॥२२॥ अर्थ:- किन्तु यह भाव भी लोग में आश्चर्यभूत है। ऐसी घटना अनन्त अवसपिणी, उत्सर्पिणी व्यतीत होने पर होती है जब नाम गोत्र कर्म क्षीण नहीं होता, उसका पूर्ण वेदन नही होता, पूर्ण निर्जीर्ण नहीं होता, प्रत्युत जिसके उदय मे आ गया है वे अरिहन्त, चक्रवर्ती, बलदेव वासुदेव, अन्तकुल मे, प्रांत कुल में, भिक्षुककल में अतीत में आये थे, वर्तमान में आते हैं और भविष्य मे आयेंगे । किन्तु उन्होने वहां पर अतीतकाल मे जन्म नहीं लिया, वर्तमान में वे जन्म नहीं लेते और भविष्य में जन्म नही लेंगे। मल: अयं च णं समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे दीवे भारहेवासे माहणकुडग्गामे नयरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स भारियाए देवाणंदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए कुच्छिसि गम्भताए वकते ॥२३॥ अर्थ-(किन्तु) ये श्रमण भगवान महावीर जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भारतवर्ष क्षेत्र में ब्राह्मण कुण्ड ग्राम नामक नगर में कोडाल गोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी जालंधर गोत्रीया देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि से गर्भरूप में उत्पन्न हुए हैं। मल: तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पण्णमणागयाणं सक्काणं देविंदाणं
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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