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________________ विक्रम संवत् शासन-प्रणाली प्राचीनतम काल से चली आ रही थी। यद्यपि बीच में मालवनिवासियों का पराभव हुआ, फिर भी उनकी शासन-प्रणाली भंग हो गई हो, इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता। सामान्यत: 'स्थिति' शब्द का अर्थ ‘पर परा', 'संप्रदाय', 'रीति' इत्यादि होता है परंतु 'राजघटना' नहीं। अतएव उपयुक्त वाक्यों का उल्था 'मालव प्रजातत्र में रूढ़ कालगणना के अनुसार करना ही अधिक सयुक्तिक होगा। - 'कृत' नाम की उपपत्ति यद्यपि मालव लोगों के समय से यह सवत् चल रहा था, और आगे चलकर उसे मालव सवत् कहा भी जाने लगा, फिर भी हमें यह न भूलना चाहिए कि प्रारंभ में उसका नाम 'कृत संवत्' ही था। यह बात प्रथम निर्देशित लेखों (७ और १२ ) से स्पष्ट हो जाती है। इस लेखक ने इन दोनों शिलालेखों को, अभी थोड़े ही दिन हुए, प्रकाशित किया है। इसके पूर्व कृत संवत् के शिलालेख अत्यत थोड़ी संख्या में प्राप्त थे, और कृत शब्द का अर्थ येन केन प्रकारेण किया जाता था। महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री का यह मत था कि मालव संवत् ही इस सवत् का आदिनाम था। परतु उसमें चार वर्षों का एक युग माना जाता था। प्रथम वर्ष को कृत, द्वितीय वर्ष को त्रेता, तीसरे को द्वापर और चौथे को कलि कहते थे। शास्त्रीजी ने जिस समय इस मत का प्रतिपादन किया उस समय केवल स० ४-६ तक के ही लेख प्राप्त थे। उन्होंने अपने मत का प्रतिपादन करने के लिये स० ४ और ६ में उद्धृत ४८० तथा ४२८ वर्षों को गत संवत्सर मान लिया अर्थात् उन्होंने यह माना कि ये दोनों शिलालेख क्रमशः ४८० और ४२८ साल पूरे होने के बाद चालू ४८१ एव ४२९ में लिखे गए। इस प्रकार यह बतलाने का प्रयत्न किया कि जिस जिस वर्ष को कृत कहा गया है उसे ४ से भाग देने पर शेष १ रहता है और केवल इसी लिये उसे कृत कहा गया है। परंतु प्रस्तुत लेखक द्वारा प्रकाशित किए हुए सं०७, ६ और १२ के शिलालेखों में आए हुए ३३५, २९५ * एपिग्राफिया इंडिका भाग १२, पृ. ३२० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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