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________________ नागरीप्रचारिणी पत्रिका और २८२ वर्षों को भी कृत नाम दिया गया है और उन्हें चाहे प्रचलित मानकर या गत समझकर ४ से भाग दिया जाय तो १ शेष नहीं रहता । अतएव शास्त्रीजी द्वारा प्रतिपादित कृत नाम की उपपत्ति अस्वीकार्य है । डा० देवदत्त द्वारा प्रतिपादित मनोरंजक उपपत्ति विक्रम संवत् का मूल नाम मालव संवत् हो है । उसे 'कृत' नाम इसलिये दिया गया, कि ज्योतिषियों के द्वारा अपनी सहूलियत के लिये वह किया हुआ ( बनाया = कृत ) था। इस प्रकार का मत डा० देवदत्त भांडार - कर ने एक समय प्रतिपादित किया था । पर ंतु बाद में उन्होंने अपने पूर्वकथित मत का परित्याग कर एक दूसरी मनोरंजक उपपत्ति बतलाई है। ई० पू० प्रथम और द्वितीय शताब्दि में शकों का क्रूर तथा कठोर शासन चक्र चल रहा था । शासकों के अत्याचारों को देखकर लोगों ने उस काल को कलियुग ही समझ लिया। आगे चलकर शुंगवंशावतंस पुष्यमित्र ने उन दुष्टों का पराभव कर ब्राह्मण धर्म को पुन: प्रतिष्ठापित किया । फलस्वरूप ब्राह्मणों ने इस काल को कृतयुग का प्रारंभकाल मान लिया । और उसी संस्मरणीय प्रसंग के निमित्त एक नवीन संवत् को स्थापना कर उसे 'कृत' नाम दिया गया । । उपर्युक्त विचारसरणि भी ग्राह्य नहीं जान पड़ती। यदि यह बात लोगों के मन पर जमी रहती कि कृतयुग ईसा के ५७ वर्ष पूर्व ही प्रारंभ हो चुका है, तो पुराणों में ऐसे सैकड़ों विधान क्यों किए जाते कि आजकल कलि ही चल रहा है ? पुराणों में पुष्यमित्र और उसके पराक्रमों का वर्णन है, परंतु यह कहीं नहीं लिखा है कि उसने एक नया शक संवत् स्थापित किया । साथ ही यह बात भी अब सर्वमान्य हो गई है कि पुष्यमित्र का शासनकाल लगभग ई० पू० १८० से १५० था न कि ई० पू० ६० के लगभग । संवत् का मूल नाम 'कृत' ही है ऊपर उद्धृत किए हुए संवत् ४६१ वाले लेख में संवत् का वर्णन 'मालव' लोगों में रूद, तथा 'कृत' विशेष नाम से संबोधित ( मालवगणाम्नास, * इंडियन एटीक्वेरी भाग ४२, पृ० १६२ ↑ वही ६१, पृ० १०१-१०३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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