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________________ ८८ नागरीप्रचारिणी पत्रिका उसमें विक्रमादित्य का कोई उल्लेख नहीं मिलता और इस बात की भी पुष्टि नहीं होती कि उसने कोई नया संवत् चलाया था । शिलालेखों और जैन, बौद्ध तथा संस्कृत साहित्य का सम्यक् विचार करने के बाद यह बात साफ झलक जाती है कि जनता में जो विक्रमादित्य नामक राजा के वि० सं० की स्थापना करने की धारणा है यह ईसा की आठवीं शताब्दि तक प्रचलित नहीं थी । अतएव वि० सं० के स्थापनकर्ता का पता पाने के लिये हमें प्रथम उद्धृत किए गए बारह प्राचीन शिलालेखों पर ही निर्भर रहना होगा और उन्हीं के आधार पर निष्कर्ष निकालने होंगे । विक्रम संवत अर्थात मालब लोगों का संवत प्रथम उद्धृत शिलालेखों के सं० १,२५ के वाक्यों को प्रमाण मानकर कुछ विद्वान् मानते हैं कि वि० सं० की स्थापना मालव लोगों ने की । मालव जाति अत्यंत वीर जाति थी । यहाँ तक कि उन्होंने स्वयं सिक ंदर के भी छक्के छुड़ाए थे । उनके यहाँ प्रजातंत्र शासन था । पूर्वकाल में उनका वास स्थान दक्षिणी पंजाब और उत्तरी सिंध था । पररंतु बाद में वे राजपूताना और तदन ंतर मालवे में जाकर राज्य करने लगे। कुछ दिनों के लिये उन्हें शकों के हाथ अपना स्वातंत्र्य खोना पड़ा, परंतु ई० पू० ५७ में उन्होंने शकों को पराभूत कर पुन: प्रजातंत्र की स्थापना कर ली। प्रथम त किए हुए 'मालवानां गणस्थित्या. याते शतचतुष्टये' व 'मालवगणस्थितिवशात् कालज्ञानाय विहितेषु' इन वाक्यांशों में गरण अर्थात् प्रजात'त्र राज्य, एव स्थिति अर्थात् राज्यस्थापना ये ही अर्थ अभिप्रेत हैं। इस प्रकार इन वाक्यों 'क्रमश: 'मालव प्रजातंत्र के चार शताब्दि उपरांत' व 'मालव प्रजातंत्र से संबद्ध कालगणना के अनुसार' होगा । जिस प्रकार गुप्त संवत् का नाम आगे चलकर 'वलभिसंवत' हो गया, उसी प्रकार 'मालव संवत्' भी 'विक्रम संवत्' कहा जाने लगा । इस मत पर होनेवाले आक्षेप यद्यपि उपर्युक्त विचारसरणी आपाततः निर्दोष मालूम पड़ती है, फिर भी उसको स्वीकार करना उतना सरल नहीं है। मालव लोगों की प्रजातंत्र Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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