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________________ विक्रम संवत् ८७ हो चुकी है कि शत्रु जय-माहात्म्य का ईसा की १२वीं शताब्दि के पहले लिखा अतएव उस ग्रंथ से यह बात सिद्ध नहीं होती कि इस में विक्रम संवत् कहा जाता था । जाना असंभव है । संवत् को पाँचवीं शताब्दि जैन पर परा का प्रमाण ग्रंथों के साथ श्वेतांबर जैन प्रथों में यह मिलता है कि वीर-निर्वाण-काल के ४७० वर्ष बाद शकों को हरा कर उज्जयिनी के विक्रमादित्य ने अपना संवत् स्थापित किया । इन ग्रंथों को प्रमाण (तभी माना जा सकता है जब उनका काल वि० सं० की प्रथम या द्वितीय शताब्दि के लगभग सिद्ध हो। परंतु वे प्रथ तो बहुत अर्वाचीन हैं और उनमें की कितनी ही बातें जैम दिगंबर मेल नहीं खातीं। इन ग्रंथों में वीर निर्वाण काल वि० सं० के ५४८ वर्ष पूर्व बतलाया गया है । श्वेतांबरों के अनुसार महावीर का निर्वाण ई० पू० ५२७ में और दिगंबरों के अनुसार ई० पू० ६०५ में हुआ । परतु अन्य ऐतिहासिक प्रमाणों से मालूम पड़ता है कि वीर- निर्वाण-काल ई० पू० ४७० के लगभग है । अतएव इस परंपरा को-जो कि अधिकांश विसंगत, अर्वाचीन तथा अन्य ऐतिहासिक प्रमाणों से अपुष्ट है - प्रामाणिक समझकर यह नहीं माना जा सकता कि विक्रमादित्य ने विक्रम संवत् की स्थापना की । 1 बौद्ध और संस्कृत वाङ्मय में बौद्ध साहित्य विक्रमादित्य के विषय में मौन है। 'वेतालपंचविंशति' तथा 'सि' हासन बत्तीसी' 'इत्यादि ग्रंथों विषय में अनेक दंतकथाएँ और कहानियाँ लिखी हुई हैं। परतु ये प्रथ बहुत ही अर्वाचीन होने के कारण विक्रम संवत् की उपपत्ति को नए विश्वसनीय प्रकाश से आलोकित करने में असमर्थ हैं। आजकल के पुराण-प्रथ ईसा की चौथी शताब्दि में लिखे गए हैं। उनमें गुप्त सम्राटों तक को इतिहास मिलता है । विदिशा उज्जयिनी के पासवाले मालव प्रांत के, ईसा के पूर्व व पश्चात् की दो शताब्दियों के, शासकों की नामावली पुराणों में दी हुई है। पर ंतु * विटरनिट्ज, ए हिस्ट्री व इंडियन लिटरेचर, भाग २ पृ० ५०३ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat संस्कृत साहित्य के विक्रमादित्य के www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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