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________________ ७१ पूश्विीसूक्त-एक अध्ययन २-~-जिस आँख से मैं देखता हूँ उसे सब चाहते हैं। हमारा दृष्टिकोण विश्व का दृष्टिकोण है, अतएव सबके साथ उसका समन्वय है, किसी के साथ उसमें विरोध या अनहित का भाव नहीं है। ३-'परंतु मेरे भीतर तेज (त्विषि) और शक्ति (जूति ) है। हमारा व्यवहार और स्थान वैसा ही है जैसा तेजस्वी और सशक्त का होता है। ४-'जो मेरा हिंसन या आक्रमण (अवोधन) करता है उसका मैं हनन करता हूँ।' इस नीति में राष्ट्र के ब्रह्मबल और क्षत्रबल का समन्वय है। ऋषि की दृष्टि में यह भूमि धर्म से धृत है, हमारे महान् धर्म को वह धात्री है। उसके ऊपर विष्णु ने तीन प्रकार से विक्रमण किया, अश्विनीकुमारों ने उसको फैलाया और प्रथम अग्नि उस पर प्रज्वलित की गई। वह अग्नि स्थान-स्थान पर समिद्ध होती हुई समस्त भूमि पर फैली है और उससे भूमि को धार्मिक भाव प्राप्त हुआ है। अनेक महान् यज्ञों का इस पृथिवी पर वितान हुआ। उसके विश्वकर्मा पुत्रों ने अनेक प्रकार के यज्ञीय विधानों में नवीन अनुष्ठानों को भूमिका के रूप में पृथिवी पर वेदियों का निर्माण किया। अनेक ऋत्विजों ने ऋक , यजु और साम के द्वारा उन यज्ञों में मंत्रों का उच्चारण किया। भूमि पर पूर्वजों के द्वारा यज्ञों का जो अनुष्ठान किया गया उससे भू-प्रतिष्ठा के लिये अनेक प्रासदियाँ स्थापित हुई और जनकीर्ति के यूप-स्तभ खड़े किए गए। भूमि को आत्मसात् करने के प्रमाण रूप में यज्ञीय यूप आज तक आर्यावर्त से यवद्वीप तक स्थापित हैं। इन यूपों के सामने दी हुई आहुतियों से सम्राटों के अश्वमेध यज्ञ अलंकृत हुए हैं। कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय विक्रम के प्रतीक चिह्नों की संज्ञा ही यूप है। पृथिवी का इंद्र के साथ घनिष्ठ संबध है। यह इंद्र की पत्नी है, इंद्र इसका स्वामी है। इसने जान बूझकर इंद्र का वरण किया, वृत्रासुर का नहीं (इंद्र घृणाना पृथिवी न वृत्रम्, ३७)। इस प्रकार पथिवी न केवल हमारी मातृभूमि है, कि तु हमारी धर्मभूमि भी है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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