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________________ नागरीप्रचारिणी पत्रिका प्रार्थना करता है कि हम उत्तम राष्ट्र में मानसिक तेज और शारीरिक बल प्राप्त करें सा नो भूमिस्त्विषि बलं राष्ट्र दधातूत्तमे, (८)। वह भूमि जिसका हृदय परम व्योम में अमृत और सत्य से ढका हुआ है, उत्तम राष्ट्र में हमारे लिये तेज और बल की देनेवाली हो। राष्ट्र के उपयुक्त स्वरूप को यो भी कह सकते हैं कि भूमि राष्ट्र का शरीर है, जन उसका प्राण है, और जन की संस्कृति उसका मन है। शरीर, प्राण और मन इन तीनों के सम्मिलन से ही राष्ट्र की आत्मा का निर्माण होता है। गष्ट्र में जन्म लेकर प्रत्येक मनुष्य तीन ऋणों से ऋणवान हो जाता है, अर्थात् त्रिविध कर्तव्य जीवन में उसके लिये नियत हो जाते हैं। राष्ट्र के शरीर या भौतिक रूप की उन्नति देवऋण है, क्योंकि यह भूमि इस रूप में देवों के द्वारा निर्मित हुई। जन के प्रति कर्तव्य पितृऋण है जो सुदर स्वस्थ प्रजा की उत्पत्ति और उनके संवर्धन से पूर्ण किया जाता है। राष्ट्रीय ज्ञान और धर्म के प्रति जो कर्तव्य है वह ऋषि-ऋण है। संस्कृति के विकास के द्वारा हम उस ऋण से ऋण होते हैं। ऋषियों के प्रति उत्तरदायित्व का अर्थ है ज्ञान और सस्कृति के आदर्शों को अपने ही जीवन में मर्तिमान करने का प्रयत्न, और यह विचार कि राष्ट्र में ज्ञान के संरक्षण और संचय की जो गुहाएँ हैं, उनमें मेरा अपना मन भी एक गुहा बने, इससे राष्ट्र के उत्तम रूप का तेज विकसित होता है। एक तपस्वी के तप से, ज्ञानी के शान से और सकल्पवान् पुरुष के संकल्प से समस्त राष्ट्र शक्ति, ज्ञान और संकल्प से युक्त बनता है। राष्ट्र में सुवर्ण के सुमेरुओं का संचय उसके स्थूल शरीर की सजावट है; परंतु वप, ज्ञान और सकल्प की साधना राष्ट्र के मन, और जन की संस्कृति का विकास है। 'सा नो भूमिस्त्विर्षि बलं राष्ट्र धातूत्तमे'—यह वाक्य राष्ट्र की उत्तम स्थिति या सर्वश्रेष्ठ आदर्श का सूत्र है। प्रत्येक राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों के साथ संबंधित होता है। उस व्यवहार को दूसरे मंत्र में (५८) चार प्रकार से कहा गया है १-'मैं जो कहता हूँ, उसमें शहद को मिठास घोल कर बोलता हूँ।' अर्थात् सबके साथ सहिष्णुता का भाव राष्ट्र की उद्घोषित नीति है और हमारे साहित्य और संस्कृति का यही सौंदेश है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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