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________________ ६० नागरीप्रचारिणी पत्रिका तुम्हारे अहोरात्र नित्य नए दुग्ध का प्रस्रवण करते हैं।' पृथिवी के प्रत्येक संवत्सर की कार्यशक्ति का वार्षिक लेखा कितना अपरिमित है। उसकी दिनचर्या और निजत्रा अहोरात्र के द्वारा ऋतुओं में और ऋतुओं के द्वारा संवत्सर में आगे बढ़ती है । पुनः संवत्सर उस विक्रम की कथा को महाकाल के प्रवर्तित चक्र को भेंट करता है। संवत्सर का इतिहास नित्य है । वसंत ऋतु के किस क्षण में किस पुष्प को हे पृथिवी, रंगों की तूलिका से तुम सजाती हो; और किस ओषधि में तुम्हारे अहोरात्र और ऋतुएँ अपना दुग्ध किस समय जमा करती हैं; पंख फैलाकर उड़ती हुई तुम्हारी | तितलियाँ किस ऋतु में कहाँ से कहाँ जाती हैं; किस समय क्रौंच पक्षी कलरव करती हुई पंक्तियों में मानसरोवर से लौटकर हमारे खेतों में मंगल करते हैं; किस समय तीन दिन तक बहनेवाला प्रचंड फगुनहटा वृक्षों के जीर्ण-शीर्ण पत्तों को धराशायी बना देता है; और किस समय पुरवाई श्राकाश को मेघों की घटा से छा देती है? – इस ऋतु विज्ञान की तुम्हारी रोमहर्षेण गृहवार्ता को जानने की हममें नूतन अभिरुचि हुई है । जन भूमि पर जन का सन्निवेश बड़ी रोमांचकारी घटना मानी जाती है । किसी पूर्व युग में जिस जन ने अपने पद इस पृथिवी पर टेके उसी ने यहाँ भू-प्रतिष्ठा प्राप्त की, उसी के भूत और भविष्य की अधिष्ठात्री यह भूमि है सा नो भूतस्य भव्यस्य पत्नी । ( १ ) * भू-प्रतिष्ठा, भू-मापन, प्रारंभिक युग में भूमि पर जन के सन्निवेश की संज्ञा है जिसे अंगरेजी में लैंड-टेकिंग कहा जाता है। प्राइसलैंड की भाषा के अनुसार 'लैंड-टेकिंग' के लिये लैंड -नामा' शब्द है । डा० कुमारस्वामी ने ऋग्वेद को 'लैंड-नामा - बुक' कहा है, क्योंकि ऋग्वेद प्रत्येक क्षेत्र में श्रार्य जाति की 'भू-प्रतिष्ठा' का ग्रंथ है । पूर्वजनों पैर टेकना ) सब देशों में द्वारा भू-प्रतिष्ठा ( पृथ्वी पर एक अत्यंत पवित्र घटना मानी जाती है । ( देखिए कुमारस्वामी, ॠग्वेद एज लैंड-नाम-बुक, पृ० ३४ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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