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________________ देश का नामकरण सरस्वती और दृषद्वती नदियों के बीच में बसे थे। भरतों के द्वारा समिद्ध होने के कारण अग्नि की एक संज्ञा भारत प्रसिद्ध हुई और ज्ञान की अधिष्ठात्रो देवी को भारती कहा गया । भरतों के द्वारा विकसित ज्ञान-प्रधान संस्कृति के लिये भारती, यह ठीक ही नाम था। भारत अग्नि' और 'भारती देवी' देश के जिस भाग में फैलती गई देश का वह भूभाग भारत नाम का अधिकारी होता गया। क्रमशः भारत नाम का संबंध सारे देश के साथ रूढ़ हो गया। भारत अग्नि और भारती देवी के आधार पर भारतवर्ष नाम की व्याख्या भूमि पर क्रमश: जन-प्रतिष्ठा और संस्कृति के विस्तार की सूचक है, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से बहुत ही सुंदर है। ब्राह्मण-युग में प्राचीन भरत जन का अंतर्भाव कुरु-पंचाल के क्षत्रियों में . होने लगा था। केवल एक जनपद के रूप में भरत नाम चालू रहा। प्राच्य भरत संज्ञा एक जनपद के लिये पाणिनि को अष्टाध्यायी में ( २।४।६६, ४।२। ११३, ८।३।७५) भी उपलब्ध होती है । ब्राह्मण-युग में भारत नाम की उत्पत्ति का आधार दौष्यंति भरत को कहा गया है। इन्होंने अठहत्तर अश्वमेध यज्ञ यमुना के तट पर और पचपन गंगा के तट पर किए। भरत के बढ़ते हुए प्रताप की महिमा को बताने के लिये यह भी कहा गया है कि सारी पृथिवी जीतकर भरत ने इंद्र के लिये सहस्रों अश्वों को मध्य किया परः सहस्रानिन्द्रायाश्वान्मध्यान् य ाहरत् ; विजित्य पृथिवीं सर्वाम् ॥ (शतपथ १३।५।३।१३) इस गाथा में 'विजित्य पृथिवीं सर्वाम्' शब्द महत्त्वपूर्ण हैं। दिगंतव्यापी भरत के प्रताप को प्रकट करनेवाली दूसरी गाथा यह है महदद्य भरतस्य न पूर्वे नापरे जनाः। दिव' मर्त्य इव बाहुभ्यां नोदापुः पञ्चमानवाः ॥ (श० ब्रा० ) अर्थात्, भरत के महत् या महत्व को न पहले के न बाद के जनों में कोई प्राप्त कर सका, जैसे पृथिवी पर खड़े हुए किसी व्यक्ति के लिये आकाश को कुना कठिन हो। सब पृथिवी को अपने विजित में लाने के कारण भरत का महत्व पहले के और बाद के इतिहास में सबसे अधिक समझा गया। ज्ञात Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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