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________________ ३६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका होता है कि भरत के इस विशाल चक्रवर्ती स्वरूप से भारत देश के नाम का संबंध भारती जनता को बहुत रोचक प्रतीत हुआ। कुरु-पंचालों के यशःप्रधान काव्य महाभारत इतिहास में भरतवंशोत्पन्न भारत और देशवाची भारत का सबंध बिल्कुल निश्चित हो चुका था और उसमें 'वर्ष भारत भारतम्' की गूंज सर्वत्र सुनाई देने लगती है। 'वर्ष भारत भारतम्' महाभारतकाल का सबसे बढ़िया भौगोलिक सूत्र है जो आज भी हमारे काम का है। मध्यदेश-आर्यावर्त मनु के धर्मशास्त्र में और पतंजलि के महाभाष्य में मध्यदेश और आर्यावर्त इन दो नामों का भी प्रयोग पाया जाता है। भारत नाम का प्रयोग वहां नहीं है। मध्यदेश और आर्यावर्त नामों की परंपरा लौकिक संस्कृत और काव्य-साहित्य में बराबर आगे चलती रही। पर इन दोनों नामों का प्रयोग समस्त देश के लिये न होकर उत्तरी भारत, विशेषतः गंगा-यमुना की अंतवेदी की विस्तृत सीमाओं के लिये ही प्रसिद्ध रहा। मनु में मध्यदेश के लिये बड़ी श्रद्धा का भाव प्रकट किया गया है। मध्यदेश मानव-चरित्र के लिये पृथिवी का आदर्श और उसका हृदय था । गुप्त-काल के सुवर्णयुग में भी मध्यदेश न केवल भारतवर्ष में, बल्कि चतुर्दिगंत में भी प्रसिद्ध हो गया था। नेपाल और तिब्बत में अंतर्वेदी के निवासी गौरव के साथ 'मध्यदेशीय' या मधेसिया कहे जाने लगे। . सिंधु-हिंदु देश के नामकरण की एक दूसरी धारा ऋग्वेदीय 'सिंधु' शब्द है। ऋग्वेद में सिधु शब्द उस महान नद को सज्ञा के लिये प्रयुक्त हुआ है जो उत्तरपश्चिमी भारत के भूगोल की सब से बड़ी विशेषता है। सिंधु के इस पार का पंचनदीय प्रदेश तो भारतवर्ष की सीमा के अंतर्गत है ही, सिधु के उस पार का वह काँठा भी जहाँ का पानी ढलकर सिधु में आता है और जिसमें कुभा ( काबुल नदी), सुवास्तु (स्वात पंजकोरा), गोमती (गोमल), मु (कुरम ) आदि नदियाँ हैं—सदा भारतीय भौगोलिक विस्तार का एक अंग माना जाता था। अफगानिस्तान (आश्वकायन, गंधार ), बदख्शों और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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