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________________ ३४ नागरीप्रचारिणी पत्रिका दक्षिण में फैले हुए समुद्रों की अपार जलराशि के ऊपर कुमारिका अधिष्ठात्री देवी की तरह भारतवर्ष के साथ उन समुद्रों के संबंध को विज्ञापित करती है । उत्तर में गंगा का उद्गम भारत की स्वाभाविक उत्तरी सीमा है । हिमालय में गंगा के उद्गम और धाराओं की खोज तथा नामकरण प्राचीन भारतीय भूगोल- वेत्ताओं के विलक्षण विक्रम का प्रमाण है। गंगा, अलकनंदा, भागीरथी, मंदाकिनी और जाह्नवी यद्यपि लोक-साहित्य में पर्यायवाची समझी जाती हैं, तथापि ये नाम हिमालय में गंगा की जलद्रोणी को सींचनेवाली पृथक् पृथक धाराओं के हैं। इनमें से जाह्नवी गंगा की सबसे उपरली धारा है । वह हिमालय के भी उस पार जस्कर पर्वत श्रृंखला से आई है और उसका उद्गम टिहरी रियासत का सबसे ऊपरी छोर है । वर्तमान भारत की उत्तरी सीमाएँ ठोक वहीं तक विस्तीर्ण हैं । इसलिये कह सकते हैं कि जहाँ तक गंगा है वहीं तक उत्तर में भारतवर्ष है। 1 पुराणों ने निरुक्तशास्त्र की दृष्टि से भी देश के नाम की व्याख्या करने का प्रयत्न किया है। मत्स्य और वायु पुराण के अनुसारभरणाच्च प्रजानां वै मनुर्भरत उच्यते । निरुक्तवचनाञ्चैव वर्षं तद्भारतं स्मृतम् ॥ ( वायु० ४५/७६ ) 'प्रजाओं का भरण-पोषण करने के कारण मनु की एक संज्ञा भरत कही गई है । इस शब्द व्युत्पत्ति को ध्यान में रखते हुए यह देश भारतवर्ष कहलाता है। इसका अभिप्राय यह है कि मनु प्रजापति ने सबसे पहले धर्म और न्याय व्यवस्था स्थापित की। उस व्यवस्था के द्वारा प्रजाओं के भरण-पोषण का सिलसिला शुरू हुआ। इस भरणात्मक गुण के कारण मनु भरत कहे गए, और जिस भूखंड में मनु की संतति ने निवास किया और मनु की पद्धति प्रचलित हुई उसका नाम भारतवर्ष पड़ा । इस व्याख्या की यह विशेषता है कि इसमें देश के नामकरण को त्रैकालिक दृष्टिकोण से समझने का प्रयत्न है। अथर्ववेद के पृथिवीसूक्त में भी कहा गया है कि यह मातृभूमि मनु की संतति के बेरोक-टोक (असंबाध ) बसने का स्थान है । 1 किंतु भरत और भारत इन दो शब्दों का और भी प्राचीनतर मूल ऋग्वेद में है। ऋग्वेद-काल में भरत आर्यों की एक प्रतापी शाखा या जन की संज्ञा थी, जो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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