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________________ शाक्वरी व्रत रहना पड़ेगा। तांड्य ब्राह्मण में स्पष्ट कहा है कि इंद्र के द्वारा. वृत्रासुर को पराजय पाप की पराजय है। - जितना शीघ्र हम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में शक्ति के. अवलंबन से पाप को पराजित कर देते हैं उतने ही वेग से हम जीवन के श्रेष्ठ कल्याणों को प्राप्त करने में समर्थ होते हैं। एताभिर्वा इन्द्रो वृत्रमहन् । क्षिप्रं वा एताभिः पाप्मानं हन्ति चित्रं वसीयान् भवति। (तांड्य १२।१२२३) इंद्र का वज्र शक्वरी शक्ति से बना हुआ है, इसलिये उसे प्राचीन परिभाषा में शाक्वर कहा गया है। "शाक्वरो वनः" (तै० २।२५।११ )। राष्ट्र का रक्षक बल शक्वरी हो का सुंदर रूप है। ब्राह्मणों का ब्रह्मवर्चस तेज भी शाक्वरी शक्ति पर निर्भर है, वैश्यों की श्री और शूद्रों की पशु-समृद्धि तभी तक सुरक्षित है जब तक राष्ट्र में शक्वरी मंत्रों का महानाद जीवित रहता है। इस दृष्टि से ब्राह्मणकारों ने निम्नलिखित परिभाषाओं का उल्लेख किया है 'ब्रह्म शक्वर्यः' (ता. १६५।१८), "वन शक्वर्यः” (तां० १२।१।१४), श्रीः शक्वर्यः (ता. १३२२२), पशवः शक्वर्यः (ता. १३॥१॥३)। गोभिल-गृह्यसूत्र में यह भी कहा गया है कि प्राचीन काल में ब्रह्मचारी वेदाध्ययन समाप्त करने के बाद कुछ काल पर्यत विशेष रूप से शाकरी व्रत को आराधना के लिये प्राचार्य के पास ठहर जाते थे। विद्याध्ययन के द्वारा जो कुछ उन्हें उपलब्ध हुश्रा था उसे इस समय में अपनी सकल्प शक्ति के बल से जीवन के लिये उपयोगी बनाते थे। इस शाकरी व्रत की अवधि में विशेष रूप से महानाम्नी ऋचाओं का अध्ययन और पारायण करना पड़ता था। ये दस ऋचाएँ सामवेद के अंतर्गत पूर्वाचिक के अनंतर और उत्तराचिंक के पहले दो गई हैं। इनका गान महानाम्नी साम कहलाता था और शाकरी छंद में होने के कारण इन्हीं को शाकरी भी कहते थे। किसी समय इन मंत्रों की महिमा गायत्री मात्र के समान समझी जाती थी। गौतम और बौधायन के धर्म सूत्रों में इनको परम पावन कहा गया है। जिस समय राष्ट्र में वैदिक शिक्षा के आदर्श Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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