SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नागरीप्रचारिणी पत्रिका जीवित थे उस समय माताएँ अपने बच्चों को स्तन्यपान कराते समय ये आशीर्वाद देती थी-'हे पुत्रो! तुम यथाविधि ब्रह्मचर्याश्रम का पालन करके विद्याध्ययन करते हुए अंत में महानाम्नी साम पयंत उच्च शिक्षा में पारंगत बनो।' ऐतरेय ब्राह्मण में स्पष्ट कहा है कि अपनी आत्मा को महान् बनाने का प्रयोग महानाम्नी है इन्द्रो वा एताभिर्महानात्मानं - निरमिमीत तस्मात् महानाम्न्यः (ऐत० ५७) शतपथ ब्राह्मण के अनुसार यज्ञ के माध्यंदिन सवन में महानाम्नी ऋचाओं का गान किया जाना चाहिए। इसका अभिप्राय यही है कि मनुष्य का यौवनकाल जो कि उसके आयुरूप यज्ञ का माध्यंदिन सवन है, भरपूर शक्ति के संचय और अभिव्यक्ति का सर्वोत्तम समय है। महानाम्नी ऋचाओं में जिस शक्तिशाली इंद्र का आवाहन किया जाता है उस वनशाली देव की वीर्यवती महिमा का जीवन में साक्षात्कार करनेवाले नवयुवक जिस राष्ट्र व समाज में जन्म लेते हैं वह समाज कृतकृत्य हो जाता है। जहाँ आलस्य और मूर्छा रूपी घोर पापों को पैरों तले रौंदकर प्रजाए सोते से जागती हैं वह राष्ट्र इंद्र की भाँति ही महान् बन जाता है। उसके सभेय और रथेष्ठ युवक इंद्र का आवाहन करते हुए शाक्वरी गान करते हैं। शाकरी मंत्रों का अनुवाद "हे देवों में बलिष्ठ और मंहिष्ठ इंद्र! तुम पूर्वजों की शक्तियों के अधिपति हो। हम अपने नवजागरण में उन बलों का पुनदर्शन करना चाहते हैं। अतएव हे वजिन् ! तुम्हारे अपराजित तेज का हम श्रद्धा के साथ आवाहन करते हैं। तुम्हारी अबाधित गति हमारे रथ-चक्रों में निनादित हो । हे शूर! अपनी समस्त रक्षण-शक्ति से हमारी रक्षा करो। अभ्युदय और रक्षा के लिये तुम्हारा सान्निध्य हमें प्राप्त हो। हे वसुपते ! हमको सब प्रकार से पूर्ण करो, क्योंकि जो भरे-पूरे हैं उन्हीं की संसार में प्रशंसा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy