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________________ २६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका जीवन का प्रासाद खड़ा किया जा सकता है। हम जितना-कर सकते हैं वही हमारे जीवन की कसौटी है। 'शक्ल' धातु के जिन लकारों का हमारे जीवन में पारायण हो पाता है वे ही हमारी गति के ध्रुवमापदंड बनते हैं। जीवन के शांत मुहूर्तों में जब हम सोचते हैं-"क्रतो स्मर, कृतं स्मर" अर्थात् अपने संकल्प का स्मरण करो और अपने कर्म से उसका मिलान करो, तो यही निष्कर्ष निकलता है कि 'सकना' ही करना है। हमारे दृढ़ सकल्प की शक्ति बाहु में अवतीर्ण होकर हमें कम की ओर प्रेरित करती है। शक्तिविहीन सकल्प कोरे कागज की भाँति है। कर्मशक्ति या शाक्वरी के अंकों से लिखा हुआ पत्र जीवन में दर्शनी हुंडी के समान काम देता है। वह जीवन-लक्ष्य को वीर के अमोघ बाण की भाँति वेध देता है। इस विश्व में जहाँ भी देखा शाक्वरी व्रत का प्रकाश है। प्रजापति अपने अनंत ईक्षण, तप और श्रम से सृष्टि बनाने में समर्थ हुए-यही उनका शाक्वरी व्रत था: 'यदिमांल्लोकान्प्रजापतिः! सृष्ट्वेदं सर्वमशक्नोद्यदिद किं च तच्छक्वर्योऽभवं. स्तच्छश्वरीणां शक्वरीत्वम् ।' (ऐतरेय ब्रा० ५७) . अर्थात् प्रजापति ने इन लोगों को बनाकर यहाँ जो कुछ भी है उस सबको शक्ति-समन्वित किया। यही शक्ति शक्वरी हुई। प्रजापति के 'सकने', सजनसामर्थ्य में ही शक्वरी का शाक्वरीपन है। कौषीतकी ब्राह्मण २३२ में कहा गया है कि इंद्र ने जिस शक्ति से वृत्रासुर का वध किया उसका नाम शाक्वरी है। एताभिर्वा इन्द्रो वृत्रमशकद्धन्तुम् तद्यदाभित्रमकशद्धन्तु तस्माच्छश्वर्यः॥ . एक ओर आसुरी शक्ति का प्रतीक वृत्र है, दूसरी ओर दैवी शक्ति के प्रतिनिधि इंद्र हैं। देवों और असुरों के शाश्वत-संग्राम में जिस विशाल सचित शक्ति से देवता असुरों पर विजय पाते रहे हैं उस शक्ति का नाम शाक्वरी है। जब तक विश्व-नियंता के सर्वाभिभावी नियमों के अनुकूल सृष्टि के कार्यों का संचालन होता रहेगा तब तक आधिदैविक, आध्यात्मिक और आधिभौतिक क्षेत्रों में अवश्य ही असुरों को शाक्वरी शक्ति के अनुशासन में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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