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________________ शाक्वरी व्रत [ लेखक-श्री वासुदेवशरण] ___ गोभिल गृह्यसूत्र ३२१७९ में एक उल्लेख है कि प्राचीन काल में माताएँ अपने बच्चों को दूध पिलाते समय उस अमृत-क्षीर के साथ इस मंगलात्मक आशीर्वाद का पान कराती थीं कि 'हे पुत्रो, तुम इस जीवन में शाक्वरी व्रत के पारगामी बनो अथा हि रौरुकिब्राह्मण भवति । कुमारान् ह स्म मातरः पाययमाना पाहुःशाक्वरीणां पुत्रका व्रतं पारयिष्णवो भवतेति । यह किसी प्राचीन ब्राह्मण ग्रंथ का वचन है, जो इस समय अप्राप्य है और जिसका नाम रोरुकि ब्राह्मण था। रोरुक नगर प्राचीन सौवीर देश की जिसे आजकल सिंध कहते हैं राजधानी थी। रोरुक का वर्तमान नाम रोड़ी है जो सक्खर के पास सिंध के तट पर है। संभवतः इसी सीमांत देश के एक ऋषि-प्रवर ने इस शाक्वरी व्रत के माहात्म्य को भली भाँति समझकर राष्ट्रीय कुमारों के जीवन के साथ उसके संबंध को दृढ करने का उपदेश दिया था। जिस राष्ट्र में माताएँ कुमारों के जीवन-सूत्र का प्रारंभ शाक्वरी मंत्रों से करें, जहाँ स्तन्य-पान के साथ ही शाक्वरी भावना प्रोत-प्रोत हो, वहाँ की उदयात्मक शक्ति का केवल अनुमान किया जा सकता है। जीवन-मूल मंगलमंत्र का रहस्य शाक्वरी व्रत है। यदि यह पूछा जाय कि मानवी जीवन क्या है तो इस प्रश्न का यथार्थ उत्तर यह कहकर दिया जा सकता है कि प्रत्येक मनुष्य का जीवन 'डुकृञ् करणे' धातु के अनंत रूपों का विकास है। मनुष्य जो कम करता है उसी के अनुरूप अपने जीवन को ढालने में समर्थ होता है। कर्म करने की क्षमता जीवन का अक्षय्य धन है। इस अनंत भंडार में से प्रत्येक मनुष्य जो चाहे प्राप्त कर सकता है। 'डुकृञ् करणे' या 'करना' धातु का मेरुदंड 'शक्ल' या सकना धातु है। मनुष्य की शक्ति उसके कार्य की सनातनी मेरु है। शक्ति की नींव पर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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