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कर्मभूमि और पाणिवाद
व्यास के धारणात्मक धर्म की परिभाषा में यह लोक कर्मभूमि कहा गया है। यहाँ से आगे जो परलोक है वह फलभूमि होगाकर्मभूमिरिय ब्रह्मन् , फलभूमिरसौ मता।
(वनपर्व, २६१ । ३५)
( २ ) कम मनुष्य को विशेषता हैप्रकाशलक्षणा देवा मनुष्याः कर्मलक्षणाः ।
(अश्वमेध०, ४३।२०) कम ही मनुष्य की सच्ची परिभाषा है। कम करने से जीवन में जो प्रकाश उत्पन्न होता है उसी से मनुष्य देव बन जाता है।
मानवी पुरुषार्थ की श्रेष्ठता का प्रतिपादन करते हुए व्यास ने स्वयं देवराज इंद्र के मुख से कर्मवाद या पाणिवाद का व्याख्यान कराया है
. जिनके पास हाथ हैं वे क्या नहीं कर सकते ? जिनके पास हाथ हैं वे ही सिद्धार्थ हैं। जिनके पास हाथ हैं उनको मैं सबसे अधिक सराहना करता हूँ।
जैसे तुम सदा धन चाहा करते हो, वैसे मैं तो हाथवाले मनुष्यों की प्राप्ति चाहता रहता हूँ। पाणि-लाभ से बढ़कर अन्य कोई लाभ नहीं है।
जिनके पास देवों के दिए हुए दस अँगुलियोवाले हाथ हैं, वे जाड़े. गर्मी-बरसात से अपनी रक्षा करते हुए वस्त्र, अन्न और सुख के साधन प्राप्त करते हैं।
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